ऐसी पंचायतों में एक विषय पर लगभग सहमति बनती दिख रही है कि इस बार मंत्रिमंडल के नामों पर अंतिम मुहर दिल्ली से ही लगना है। मप्र में बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आने के चलते अब प्रदेश पर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का शिकंजा मजबूत होता दिख रहा है।
अब दिल्ली के दरबार में पुराने मंत्रियों की कैसी छवि पेश हो रही है,जातिगत गणित को साधे जाने की कवायद में किस विधायक की दावेदारी दमदार बन रही है और और कद्दावर माने जाने वाले नेताओं का कितना दबदबा वहां महसूस किया जा रहा है यह ही वो कुछ घटक हैं जो मंत्रिमंडल के नामों के अंतिम चयन में आने की प्रक्रिया में गुल खिला सकते हैं।
कई तरह के दावे सियासतदारों द्वारा किये जा रहे हैं जैसे कि हर जिले से एक विधायक को मंत्री बनने का मौका मिल सकता है, तो कोई कह रहा है की हर विधानसभा से किसी एक को मौका मिलेगा, तो कोई कह रहा है की दो जिलों में से एक विधायक को मंत्रिमंडल में स्थान मिलेगा।
कुछ मजे लेने वाले यह भी कह रहे हैं कि मंत्रिमंडल में चाहे जिसे भी स्थान मिल जाये पर इस बार उनको काम करने की वैसी आजादी मिलना मुश्किल ही लग रही है जिसका आनंद पिछले कार्यकालों में मंत्रियों ने उठाया है। इस बार मंत्रियों को मोदी ही के कार्यालय के सख्त निर्देशों के मुताबिक ही काम करना पड़ सकता है ।
सियासतदारों का एक धड़ा यह मान रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का जलवा अभी बरकरार है। मोदी जी की पसंदीदा नेताओं की सूची में अभी उनका नाम ऊपर ही बताया जा रहा है। जिसके चलते उनके दो भरोसेमंद माने जाने सिपहसलार गोविन्द सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट को मंत्रिमंडल में महती भूमिका मिल सकती है । अगर ऐसा नहीं हो सका तो सिंधिया की खासी किरकिरी हो सकती है।
कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह कुछ ऐसे कद्दावर चेहरे हैं कि उनकी मौजूदगी के बिना दमदार मंत्रिमंडल गठन संभव नहीं लगता है। हालाँकि क्षेत्रीय संतुलन बैठने की कवायद में कुछ नए चेहरे व पहली बार ही जीत कर आये विधायकों को मंत्रिमंडल में स्थान मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
वहीं शिवराज सिंह से मोदी की नाराजगी छुपी नहीं है। शिवराज द्वारा जिस तरह से मुफ्त लाभ देने वाली कल्याण योजनाओं की आड़ में सरकारी धन को लुटाने का चलन चलाया उससे मोदी उनसे खासे नाराज बताए जा रहे हैं। इस कारण शिवराज के करीबी और भरोसेमंद माने जाने वाले विधायकों को भी ने मन्त्री मंडल में प्राथमिकता के साथ स्थान दिए जाने पर संशय जताया जा रहा है। हालांकि शिवराज खेमे के मंत्री मंत्रिमंडल में महती भूमिका मिलने के प्रति काफी आश्वस्त नजर आ रहे हैं।
इसके अलावा मंत्रिमंडल में युवा लोगों को शामिल करने की नीति के चलते भी नए विधायको को मंत्रिमंडल में अवसर मिल सकता है जिसके चलते कुछ पुराने वरिष्ठ कई बार मंत्री रह चुके विधायकों को घर भी बैठाया जा सकता है या उनमें से काबिल और सक्रीय माने जाने वाले नेताओं को संघठन में प्रदेश या केंद्र में भी भूमिका भी दी जा सकती है ।
लंबे समय से सत्ता सुख भोग रहे नेताओं की फेहरिस्त में सबसे ऊपर गोपाल भार्गव का नाम लिया जा रहा है। घाघ सियासतदारों के मुताबिक जिन नेताओं को टिकिट हासिल करने की लिए काफी जतन करना पड़ा है उनकी सूची में भार्गव जी का नाम नहीं रहा ऐसा कहने वाले भी कम ही बताए जा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में स्थान पाने की जुगत में ऐड़ी चोटी का जोर लगाने वाले ऐसे नेता सफल नहीं होने की स्थिति में बदले में अपने किसी परिजन को आगे कभी विधानसभा या लोकसभा का टिकिट या कोई लाभ का पद दिए जाने के आश्वासन पर शांत हो कर बैठ सकते हैं।
हालांकि एक दो दिन में तो मंत्रिमंडल के नामों का खुलासा हो ही जायेगा परंतु उसका जो भी स्वरुप सामने आने वाला है वह कई तरह से लोगों को चौकाने वाला साबित हो सकता है। तब जनता तो दूर, हो सकता है खुद प्रदेश के मुखिया ही मन ही मन कह उठें कि यह कैसा मंत्रिमंडल है ?