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मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही प्रदेश भर में अटकलों का दौर शुरू हो गया है. हर कोई अपनी-अपनी समझ से गुणा-भाग  करने में जुटा नजर आ रहा है कि आखिर कौन बनेगा मुख्यमंत्री और क्या उनके विधायक को कैबिनेट में जगह मिल पाएगी?

बुंदेलखंड में इस मामले में लोग कुछ ज्यादा ही सक्रिय नजर आ रहे हैं और होंगे भी क्यों नहीं ? कार्यकाल पूरा करने वाली प्रदेश  सरकार में इस अंचल से तीन कैबिनेट मंत्री   थे।  

इसके अलवा केंद्र सरकार में भी दो मंत्री बुंदेलखंड से ही थे।   इनके अलावा एक से से ज्यादा विधायक ऐसे भी रहे जो दो से तीन बार से लगातार जीत कर आने के बाद खुद को  मंत्री पद का दावेदार मानते रहे हैं।   

हाल में में आये चुनाव नतीजों में वे सब फिर से जीत कर आये हैं।  अब सवाल यही उठ रहे हैं की आखिर बुंदेलखंड से कितने जनप्रतिनिधियों  को  नए मंत्रिमंडल में स्थान दिया जायेगा ? सभी को तो मंत्री बनाया जान संभव तो लगता नहीं है ? 

तो किस नए को स्थान मिलेगा और किस पुराने को बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा ये दुविधा सियासत की नब्ज पर पकड़ रखने का दावा  करने  वाले सियासतदारों की नींद उड़ाए हुए है।

मप्र में 16 वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में कुल 230  सीटों   में से 163  स्थानों पर भाजपा जीती है।  इस जीत में बुंदेलखंड अंचल की कुल 26 सीटों  में से  भाजपा को पिछले बार की 17  सीटों के मुकाबले 21 सीटों पर जीत मिली है।  मतलब सरकार में बुंदेलखंड की और से मंत्रिमंडल में दावेदारी करने वालों की संख्या में और इजाफा हो गया है।  

अगर बुंदेलखंड अंचल के दावेदारों की बात करें तो सुरखी विधानसभा क्षेत्र से जीत कर आये गोविन्द सिंह राजपूत अभी तक भाजपा सरकार में दो अहम् मंत्रालयों राजस्व और परिवहन विभाग के मंत्री रहे और अब मुश्किल से ही सही पर फिर जीतकर आकर अपनी मंत्री मंडल में स्थान पाने की आस लगाए हुए हैं।  

वहीँ खुरई विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे मुख्या मंत्री शिवराज सिंह चौहान के सबसे ज्यादा विश्वासपात्र माने जाने वाले भूपेंद्र सिंह  नगरीय विकास एवं आवास मंत्री रहे और अब फिर से जीत हासिल कर मंत्री पद के प्रबल दावेदार बने हुए हैं।  इतना ही नहीं प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की जब भी बयार चली उन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में भी चर्चा में आते रहे।  

ऐसे ही रहली विधानसभा क्षेत्र से आठ बार से जीत रहे गोपाल भार्गव लगातार किसी न किसी विभाग में मंत्री पद पर रहे।  अब नौवीं बार जीत कर आकर मंत्री पद के दावेदारों में अगली पंक्ति में खड़े हैं।  

दमोह संसदीय क्षेत्र से जीत कर केंद्र सरकार में राज्य मंत्री रहे प्रह्लाद पटेल इस बार  नरसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र से जीत कर आये हैं व् उनके मुख्यमंत्री या उप-मुख्यमंत्री पद के जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चाएं जोरों से हैं। 

टीकमगढ़ जिले की जतारा सीट से हरिशंकर खटीक भी तीसरी बार चुनाव जीते हैं जबकि जिले की अन्य दो सीटों पर पर प्रदेश में भाजपा की भारी जीत के बाद भी कांग्रेस की जीत हुयी है। ऐसे में खटीक को भी पार्टी लाभ देने पर विचार कर सकती है। 

पन्ना विधानसभा क्षेत्र से लगातार दूसरी बार चुनाव जीत कर आये  ब्रिजेन्द्र प्रताप सिंह पहले भी दो बार पवई विधानसभा क्षेत्र से जीते हैं।  भाजपा सरकार में मंत्री भी रहे हैं।  इनकी दावेदारी भी किसी से कम नहीं बताई जा रही है। 

ऐसी ही दावेदारी निवाड़ी विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार जीत कर आये अनिल जैन की भी बताई जा रही है। 

सागर  और नरयावली विधानसभा के विधायक  शैलेन्द्र जैन और प्रदीप लारिया भी लगातार चौथी बार जीत कर आने के चलते मंत्रिमंडल में स्थान पाने के लिए प्रबल दावेदार बताये जा रहे हैं। 

मप्र में भाजपा की नयी सरकार में प्रदेश के लगभग सभी अंचलों से मंत्री मंडल में जगह पाने के लिए दावेदार अपनी-अपनी पूरी ताकत लगाए हुए हैं।  लेकिन प्रदेश में मंत्रिमंडल और सरकार का स्वरुप क्या होगा और उस स्वरुप का आकार देने में कौन-कौन से घटक काम कर रहे हैं इस बात को लेकर भी तरह-तरह के प्रारूप चर्चाओं में उछल रहे हैं।   

सियासत दारों की एक धड़ा यह दावा कर रहा है कि भाजपा के आलाकमान आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर समाज के सभी वर्गों को साधने की जुगत में सोशल इंजीनियरिंग के जरिये मंत्रिमंडल का गठन करेंगे।  इसके चलते भाजपा की नयी सरकार में कुछ पुराने कद्दावर मंत्रियों को भी मंत्री पद से महरूम रहना पड़  सकता है और जातिगत समीकरणों को साधने की कवायद में प्रदीप लारिया जैसे विधायकों को मौका भी  मिल सकता है। 

लेकिन विधानसभा चुनावों से महीनों पहले से भाजपा में फेरबदल की चर्चाओं के शुरू होने के समय से सियासत के टीकाकार प्रदेश में गुजरात फॉर्मूला लागू किये जाने की अंदेशा जताते रहे वो अब एक बार फिर नए मंत्री मंडल के गठन की चर्चाओं के छिड़ते है फिर गुजरात के  फॉर्मूले उछलने लगे हैं।  उनका मानना है कि यह फार्मूला ही प्रदेश में नए मंत्रिमंडल का स्वरुप तय करेगा और अगर ऐसा हुआ तो कोई भी पुराना   चेहरा मंत्रिमंडल में  नजर नहीं आएगा। 

हालाँकि मप्र के मुख्यमंत्री के चेहरे और मंत्रिमंडल का स्वरुप सामने आने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। लेकिन फिर भी राज्य में राजनीतिक दिग्गजों और नये-नये हथकंडे अपनाकर खुद को राजनीतिक विशेषज्ञ के रूप में स्थापित करने की अटकलों में रुचि रखने वालों के बीच जो घमासान चल रहा है, वह कैबिनेट गठन के अंतिम रूप से सामने आने से पहले रुकने वाला नहीं है.

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