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SAGAR WATCH/ देश के पांच राज्यों  में होने वाले विधानसभा चुनावों में  मध्य प्रदेश के चुनाव  कुछ ज्यादा ही चर्चा में हैं। चर्चा में रहने की ख़ास वजह प्रदेश में टिकिट वितरण को लेकर बड़ा फेरबदल के अनुमानों का धराशायी होना माना जा रहा है । 

कहा जा रहा है की स्थानीय नेतृत्व की चतुराई के आगे आखिर कार केंद्रीय नेतृत्व को हथियार डालने पड़े और जो जहां से चुनाव लड़ा था उसे वहीं से टिकिट दे दिया। हालांकि यह कदम प्रदेश के घाघ सियासतदारों को पच नहीं रहा है ? वे यह पता लगाने में लगे हैं कि वह केंद्रीय नेतृत्व जो "दम से चौंकाने वाले" गुजरात जैसे फैसले लेने के लिए जाना जाता है वह मप्र में किसी चाणक्य के आगे नतमस्तक हो गया है? 

सियासतदारों का मानना है की दो दशक से प्रदेश में बीजेपी का सत्ता में काबिज़ बने रहने के चलते " जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर चलने की चर्चाओं के यूँ ही ख़ारिज नहीं किया जा सकता है। साथ ही उनका यह भी तर्क है की ऐसा भी नहीं हैं की बीजेपी का  तेज -तर्राट  नेतृत्व इस बात को जानता ही न हो? तो फिर ऐसा क्या हुआ की बीजेपी को प्रत्याशियों की नामों की सूची का बड़ा हिस्सा पिछले बार के ही सूची की तरह "जस का तस" जारी करना पड़ी?

मप्र में यह बात भी काफी चर्चा में है की बीजेपी के अन्दर सब कुछ ठीक नहीं है। किसी भी पार्टी के अन्दर  लम्बे समय समय तक सत्ता में रहने पर जो खामियां सहज ही आना बताया जाता  जातीं हैं वह बीजेपी में भी गिनाईं जा रहीं हैं ? 

सबसे ज्यादा चर्चा मलाई दर पदों पर काबिज़ हुए  व् सत्ता का हिस्सा बने नेताओं के व्यवहार से पार्टी के ही जमीनी कार्यक्रताओं की नाराजगी की हो रही है।वे  यहाँ-वहां चर्चा में  हर जगह खुलकर अपनी नाराजगी जताते नजर आ रहे हैं। वे " अपनों से ही उपेक्षित किये जाने के दर्द को छुपा नहीं पा रहे हैं । उनपर केंद्रीय नेतृत्व की नसीहत कि " चुनाव के वक्त मतभेदों को भुला कर पार्टी के लिए काम करो " भी कारगर नजर नहीं आ रही है

मप्र की सियासत को करीब से देखने वाले विश्लेषक भी इस बात से चकित हैं कि आखिर मप्र का  वह चाणक्य कौन है जिसकी चतुराई के आगे बीजेपी का घाघ नेतृत्व व् रणनीतिकार भी बदलाव का जोखिम नहीं ले पाए? 

पार्टी के ही अंदरूनी हलकों में  यह भी चर्चा है कि प्रदेश के लम्बे शासन काल में उन सभी तत्वों को जो  खुद को बीजेपी के रणनीतिकार घटक मानते आये हैं  सत्ता के मठाधीशों ने उनकी  सुख -सुविधाओं का भरपूर ख्याल रखा। 
जिसके चलते वे प्रदेश में यथास्थिति बनाये रखने के लिए बदलाव की हिमायत या मंशा रखने वालो वालों के खिलाफ जंग में किसी भी हद तक जाने को तैयार नजर आ रहे हैं। 
विश्लेषकों को लग रहा है शीर्ष नेतृत्व द्वारा बदलाव का जोखिम नहीं लेने की वजह संभव तक इन कथित विधनसंतोषियों के इन तेवरों में रणनीतिकारों को  हार के साये नजर आने लगे हों ?
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