Sagar Watch News/ साहित्य सरस्वती सागर का पाँचवा साप्ताहिक क्रम काव्य गोष्ठी आयोजन सरस्वती पुस्तकालय वाचनालय तीनबत्ती से आयोजित हुआ। जिसकी अध्यक्षता अरूण दुबे तुलसी साहित्य अकादमी ने की।
प्रथम सत्र संविधान और उसकी रूप रेखा पर संभाषण देव वाणी के क्रांति जबलपुरी ने किया,मौलिक अधिकार और नागरिक कर्तव्य पर बात की,संविधान गढने वाले सदस्य की जानकारी दी। हमारे कर्तव्य, अधिकार व निर्माण पर बात कही।
द्वितीय सत्र में राजू चौबे ने सरस्वती वंदना का पाठ किया एवं फाल्गुन पर कविता सुनायी लो होली आ गयी साथ ही गजल सुनायी। सब इंस्पेक्टर के के मौर्य ने तरन्नुम में ताजी रची गजल प्रस्तुत की।
प्राचार्य डाॅ. दिनेश कुमार साहू ने मुक्त छंद कविता सुनायी। क्रांति जबलपुरी ने सरस कविता पाठ किया।डाॅ.नलिन निर्मल ने होली पर गीत सुनाया - दिलों में रंग बिखरा लो कि होली आज आयी है।पुष्पेन्द्र दुबे कुमार सागर ने गीत सुनाया-जिंदगी है नदी पार करना कठिन जितना जीना कठिन उतना मरना कठिन।
गीतकार मणिदेव ठाकुर ने फाल्गुन पर ससुराल जाने वा क्या- क्या दुर्गत भयी गीत सुनाया। कोस रय जे स्यात की घंडी। मुकेश तिवारी ने सरस्वती गीत सुनाया। दया करो हे दयालु मैया,हे शारदे माँ। गोष्ठी संचालक राधाकृष्ण व्यास ने कविता सुनायी- सच कहता हूँ कसम आपकी,मुझको कुछ नहीं आता है लिख देता हूँ वह लोंगो को भाता है।
के एल तिवारी अलबेला ने वर्तमान व्यवस्था पर कविता सुनायी - कोई दलबदलू उधर से इधर आ गया,लगा चुनावों में असर आ गया। वृंदावन राय सरल ने श्रँगार गजल वा कविता सुनायी - ओंठो पर टेशु खिले,महुआ महके नैन,देह लगे कामायनी,यह बसंत की देन।
वरिष्ठ साहित्यकार पूरन सिंह राजपूत ने हास्य-व्यंग्य वा होली पर दोहे,चौकडिये और कविता सुनायी - आमंत्रित है सब मदमाने। खेलत कुंज महल में होरी। अध्यक्ष श्री अरूण दुबे जी ने गजल प्रस्तुत की - मैं तेरे हुक्म के कुर्बान मेरी शम्मे हया। आभार व्यक्त श्री पूरन सिंह राजपूत ने व्यक्त किया।
SAGAR WATCH/ योगाचार्य विष्णु आर्य का कहना है कि योग को योग ही बना रहने दे योगा नही बनाए। उन्होंने कहा कि योग हमारी प्राचीन संस्कृति है। योग आसन आसानी से की जाने वाली क्रिया है इसे कसरत जैसे नही करना चाहिए। उनके मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग दिवस के जरिए पूरे विश्व में नए सिरे से स्थापित किया है।
योगाचार्य श्री आर्य विश्व योग दिवस 21 जून की तैयारियों पर केंद्रित योग निकेतन द्वारा पद्माकर सभागृह परिसर में आयोजित सामूहिक योगाभ्यास कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किए।
इसी सिलसिले में कार्यक्रम के मुख अतिथि विधायक शैलेंद्र जैन ने कहा कि आज दुनिया में भारत विश्व गुरु योग जैसी अध्यात्मिक शक्तियों की वजह से है। हमने भौतिक संसाधनों की बजाय योग आयुर्वेद जैसी प्रभावी परम्पराओं पर फोकस किया । यही कारण विश्व गुरु बनाने का है। सागर में योग की लंबे समय से योगाचार्य विष्णु आर्य परंपरा को आगे बढ़ा रहे है।
अनेक संस्थाएं आगे आई है। सागरवासी योग को इस तरह अपनाए कि अब सागर को लोग योग नगरी के रूप में जाने और स्थापित हो।
भाजपा नेता सुशील तिवारी ने कहा कि नगर निगम सागर इस तरह के आयोजनों के लिए जगह उपलब्ध कराए ताकि शहरवासी नियमित योगाभ्यास कर सकें।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए योग गुरु भगतसिंह ने 21 जून को आयोजित होने वाले कार्यक्रम की विस्तार से चर्चा की।
इस अवसर पर लोगो को नियमित योगाभ्यास, श्रीयंत्र और श्री सूक्त के पाठ और नशामुक्ति का संकल्प पत्र भरवाया गया।
जनसमूह को योग कैलेंडर आदि वितरित किए गए। योगाभ्यास में अनेक स्कूलों और संस्थानों से जुड़े महिला पुरुषो ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
कार्यकम में पगारा क्षेत्र के पवन विश्वकर्मा और उनके बेटे गौरव और बेटी राधिका ने योग की संगीतमय प्रस्तुति दी।
इसी कृति का नाट्य रूपांतरण राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और रंग थिएटर फोरम के संयुक्त-तत्त्वावधान में संपन्न हुयी तीस दिवसीय अभ्यास कार्यशाला के उपरान्त स्थानीय रंगगृह रविन्द्र भवन में मंचित किया गया।
नाटक की ख़ास बात वह प्रयोगधर्मिता थी जिसके सहारे कालिदास की महान रचना अभिज्ञान शाकुंतलम के कथ्य को कहने के साथ-साथ समाज में महिलाओं की भूमिकाओं को लेकर उठ रहे सवालों से भी संवाद किया गया।
मूल कथानक को ज्यों का त्यों दिखाते हुए विदूषक व नट के हवाले से समाज में महिलाओं की भूमिका, आजादी व अधिकारों के मुद्दों को लेकर नाटक में विविध परिप्रेक्ष्य भी प्रस्तुत किये गए।
अलग-अलग कालखंडो के परिप्रेक्ष्य में कथा को घुमाए जाने के बावजूद मूल नाटक का प्रवाह बदस्तूर बना रहा और दर्शकों को बांधे रहा। राजा दुष्यंत के प्रेम प्रसंग,शकुंतला की सखियों की इस प्रेम प्रसंग को लेकर की गयी चुहुल-बाजी और विदूषक के मसखरेपन की चासनी में पगी पटकथा दर्शको को रोमांस और हास्य का खट्टा-मीठा अहसास भी कराती रही।
नाटक में किरदार तो कम थे लेकिन कलाकारों की संख्या अधिक रही फिर भी उनके बीच में अच्छा तालमेल नजर आया। युवा कलाकारों की जोशभरी संवाद अदायगी की खनक, भावप्रवणता पर हावी रही।
पार्श्व-संगीत का उतार-चढाव और माधुर्य दर्शकों को कहानी के मुताबिक विभिन्न कालखंडो के बीच प्रवाह्पूर्ण यात्रा कराने में सक्षम रहा। दृश्य एवं प्रकाश संयोजन भी कलात्मक रहा। संगीत संयोजन धानी गुन्देजा और अनंत गुन्देजा का रहा ।
किसी भी निर्देशक के लिए अभिज्ञान शाकुंतलम जैसी महान और भावपूर्ण कृतियों पर युवा और नए कलाकारों के साथ काम करना आसान नहीं होता है। नाट्य प्रस्तुति शुरू से अंत तक दर्शको को निर्देशक अर्पिता धगट की कलात्मक सोच और प्रयोग-धर्मिता से रूबरू भी कराती रही।
और अंत में नाट्य गृह के अन्दर ऐसा भी महसूस होता रह की प्रस्तुति के प्रभावी होने के चलते नाट्य गृह के करीब ही चल रहे एक कोलाहलपूर्ण आयोजन की कर्कश आवाजे भीं दर्शकों की एकाग्रता कम नहीं कर पायी।
SAGAR WATCH/ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली (संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार) एवं रंग थिएटर फोरम सागर के संयुक्त तत्वाधान में चल रही 30 दिवसीय राष्ट्रीय रंग कार्यशाला मे सिने जगत के जाने-माने अभिनेता श्री गोविन्द नामदेव जी के कर कमलो द्वारा नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम्' के पोस्टर अनावरण किया गया। साथ ही विश्व रंगमंच दिवस पर दिनांक 27 मार्च एवं 28 मार्च को रविन्द्र भवन में होने वाले नाटक 'अभिज्ञान शकुन्तलम’ नाटक का मंचन किये जाने की घोषणा की |
गोविंद नामदेव ने अपने व्यस्ततम कार्यक्रम के बीच 19 मार्च से 23 मार्च तक लगातार 5 दिनों तक रंग कार्यशाला में प्रतिभागियों को अभिनय की बारीकियां सिखाई व अपना रंगमंचीय अनुभव भी साझा किया।
पोस्टर अनावरण में कैम्प डायरेक्टर संगीत श्रीवास्तव, रंग थिएटर फोरम के निदेशक मनीष बोहरे,नाटक निर्देशक अर्पित धगट, नृत्य गुरु रामतिलक जी, दीपेश सोनी, रूपेन्द्र क्षीरसागर, विस्मय कुमार, अविकल श्रीवास्तव आदि मौजूद थे |
सागर वॉच। चर्चित जनसंत विरंजन सागर महराज का चातुर्मास कटरा गौराबाई दिगंबर मन्दिर में चल रहा है, मंगल कलश स्थापना 17 जुलाई को है। चातुर्मास में पूरे चार महीने दिगम्बर संत किसी स्थान विशेष पर ठहरकर साधना करने का संकल्प लेते हैं, एवं उसी स्थान से धर्म का प्रचार प्रसार करते हैं ।
शनिवार को पत्रकारों से चर्चा करते हुए मुनि श्री ने कहा कि सड़क सूर्य सरिता और संत किसी व्यक्ति विशेष के नहीं होते अपितु ये सबके होते हैं , उनका चातुर्मास केवल गौराबाई दिगम्बर जैन मंदिर के लिए नहीं बल्कि पूरे सागर के सभी वर्ग के भक्तों के लिए है, कोई भी व्यक्ति किसी भी वर्ग से हो वह मेरे पास आकर अपनी शंका का समाधान कर धर्म लाभ ले सकता है।
यह विचार डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति ने आज़ादी के 75 वीं वर्षगाँठ के अवसर पर भारत सरकार द्वारा आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, में ’बुन्देलखण्ड की सांस्कृतिक विरासत’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपने संबोधन के दौरान व्यक्त किये ।
संगोष्ठी का आरम्भ पण्डित राजा मिश्रा द्वारा स्वस्तिक वाचन ,सरस्वती वंदना एवं अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया। संगोष्ठी के आरम्भ में विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. हरीसिंह गौर एवं विभाग के संस्थापक प्रो. के. डी. वाजपेयी की आवक्ष मूर्तियों पर माल्यार्पण किया गया।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पद्मश्री राम सहाय पाण्डेय द्वारा अपने वक्तव्य में यह कहा गया कि हम वर्ष 1975 से विश्वविद्यालय से जुड़े हुए हैं। ऐसे कई अवसर आये जिन में मुझे अपनी विरासत राई नृत्य के संरक्षण, संवर्धन एवं विकास के लिए विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों में उपस्थित होने का अवसर प्राप्त हुआ। अंत में उन्होंने अपने मिले पद्मश्री सम्मान को व्यक्तिगत सम्मान न मानते हुए समूचे बुन्देलखण्ड का सम्मान माना है।
संगोष्ठी का बीज वक्तव्य इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. बी. के. श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत किया गया इन्होंने अपने वक्तव्य में भारतवर्ष में पाषाणकाल से लेकर आधुनिक काल तक के इतिहास में बुन्देलखण्ड की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। साथ ही बुन्देलखण्ड के विरासत स्वरूप अनेक घटनाक्रमों एवं स्थलों की महत्ता को भी बतलाया गया।
संगोष्ठी में अतिथियों का स्वागत संयोजक डॉ. आर. पी. सिंह द्वारा किया गया। इस संगोष्ठी पर प्रकाश डालते हुए विभागाध्यक्ष एवं संगोष्ठी निदेशक प्रो. नागेश दुबे द्वारा बुन्देलखण्ड की सांस्कृतिक विरासत पर नवीन तथ्यों के प्रकाश में आने की बात कही गयी। संगोष्ठी का संचालन संगोष्ठी आयोजन सचिव डॉ. सुरेन्द्र कुमार यादव द्वारा किया गया एवं संगोष्ठी के सह सचिव डॉ. सुल्तान सलाहुद्दीन ने अतिथियों का स्वागत किया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के अंत में विभागाध्यक्ष द्वारा समस्त अतिथियों का आभार प्रकट किया गया।
उद्घाटन सत्र के पश्चात प्रथम अकादमिक सत्र का आरम्भ हुआ जिसकी अध्यक्षता डॉ. शरद सिंह एवं हरगोविन्द विश्व ने किया, जिसमें डॉ. संतोष तिवारी द्वारा दमोह के शैलचित्र, अभिषेक खरे द्वारा बुन्देलखण्ड की सांस्कृतिक विरासत में लोक गीतों का योगदान डॉ. कविता शुक्ल द्वारा बुन्देलखण्ड के ताल तत्वज्ञ, डॉ. उमा पाराशर द्वारा झाँसी के संग्रहालय में संरक्षित कलाशिल्प तथा सत्र अंत में अंजली पाण्डेय द्वारा बुन्देलखण्ड के लोकगीतों पर शोध पत्र प्रस्तुत किया गया। सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ. शरद सिंह एवं हरगोविन्द विश्व द्वारा बुन्देलखण्ड की विरासत से संबंधित अपने अनुभव को साझा किया।
इस संगोष्ठी के प्रायोजक भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (प्ब्ैत्)्, नई दिल्ली एवं भारतीय स्टेट बैंक, विश्वविद्यालय शाखा, सागर हैं। इस संगोष्ठी में मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान अध्ययनशाला के अधिष्ठाता प्रो. ए. डी. शर्मा, प्रो. ए. पी. दुबे, प्रो. वी. आई. गुरू, प्रो. सरोज गुप्ता, प्रो. नवीन गिडियन. प्रो. अशोक अहिरवार, प्रो. ममता पटेल, डॉ. शशि सिंह, डॉ. कृष्णा राव, डॉ. पंकज सिंह, डॉ. संजय बरोलिया, डॉ. विश्वजीत परमार, डॉ. दीपशिखा परमार, डॉ. के. के. त्रिपाठी, डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय एवं प्रदीप शुक्ला के साथ-साथ शोधार्थी एवं विद्यार्थीगण देश के विभिन्न राज्यों से उपस्थित रहे।
सागर वॉच। मध्यप्रदेश में योग आयोग का गठन किया जाएगा। योग की शिक्षा का कार्य अभियान के रूप में चलेगा। साथ ही योग विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञों और अनुभवी योगाचार्यों से मार्गदर्शन प्राप्त किया जाएगा। खेल विभाग की गतिविधियों में भी योग को शामिल किया जाएगा।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों में अपार प्रतिभाएं हैं, उनकी प्रतिभा के हर क्षेत्र का लाभ विश्वविद्यालय को मिलना चाहिए। साथ ही शिक्षकों को भी अपनी प्रतिभाओं को निखारने का अवसर मिलना चाहिए. विश्वविद्यालय इसके लिए सबसे सुयोग्य स्थल है। यह शिक्षकों का, शिक्षकों द्वारा और शिक्षकों के लिए किया गया आयोजन है।
इसके अलावा गौर उत्सव के पहले दिन विद्यार्थियों ने शब्द, चित्र और रंगों से अपने मन के डॉ. हरीसिंह गौर को दर्शाया। गौरतलब है कि डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के संस्थापक महान शिक्षाविद् एवं प्रख्यात विधिवेत्ता, संविधान सभा के सदस्य एवं दानवीर डॉ. सर हरीसिंह गौर के 152वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में 21 नवंबर से 26 नवंबर तक ‘गौर उत्सव’ का आयोजन किया जा रहा है।
पहले दिन महाविद्यालयीन और स्कूल के विद्यार्थियों ने डॉ. गौर की जीवनी और उनके पर केंद्रित निबंध और चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लिया। यह दोनों प्रतियोगिताएं गर्ल्स डिग्री कॉलेज और एमएलबी स्कूल, सागर में आयोजित की गई थीं। आयोजन के सह-संयोजक डॉ. राजेन्द्र यादव ने बताया कि दोनों प्रतियोगिताओं में सौ से अधिक विद्यार्थियों ने प्रतिभागिता की. विश्वविद्यालय के शिक्षकों डॉ. अरविन्द कुमार और अरविन्द गौतम के निर्देशन में ये आयोजन संपन्न हुआ.
मानांतर 11 बजे से ही विश्वविद्यालय के विद्यार्थी वालीबाल प्रतियोगिता में भाग लेंगे. 12.00 बजे से विश्वविद्यालय के महिला शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी तथा महिला क्लब के सदस्यों के लिए म्यूजिकल चेयर और दोपहर 01.30 बजे से ‘टग ऑफ़ वॉर’ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है. 22 नवंबर को आयोजित सभी प्रतियोगिताएं विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग के प्रांगण में संपन्न होंगी.
मंच के संयोजक डॉ उमेश सराफ के नेतृत्व में जिला कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक को मुख्यमंत्री के नाम सौंपे ज्ञापन में आयोजकों के ऊपर हिंदू जागरण मंच सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की है।
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ज्ञापन में प्रशासन से हिंदू धर्म एवं संस्कृति और आस्था पर कुठाराघात करने वालों के ऊपर सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई किये जाने की मांग करते हुए कहा है कि कि अगर प्रशासन द्वारा गरबा आयोजक मंडलों के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो हिंदू जागरण मंच स्वयं आंदोलन कर एवं आयोजन स्थल पर जाकर बंद कराने के लिए बाध्य होगा।
गौरतलब है कि एक दिन पूर्व भी एक होटल में चल रही गरबा की तैयारियों में बज रहे अश्लील फिल्मी गानों को लेकर शिवसेना राज्य उप प्रमुख पप्पू तिवारी ने प्रदर्शन कर ज्ञापन दिया था।
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सागर वॉच। भगवान् श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति श्री राधारानी का प्राकट्योत्सव सागर के भूतेश्वर मार्ग पर स्थित श्रीगुरुधाम हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
राधाष्टमी 59वें वार्षिक महोत्सव में 14 सितम्बर मंगलवार को प्रात: 6 बजे मंगलारती के पश्चात् भजन-संकीर्तन एवं श्री हरिनाम संकीर्तन प्रभातफेरी निकाली गई। श्री गुरुधाम से प्रारम्भ होकर मोतीनगर थाना, चमेलीचौक,बड़ाबाजार सराफा कोतवाली होकर चकराघाट पहुँचकर वापिस उसी मार्ग से प्रभातफेरी गुरुधाम में समाप्त हुई।
प्रभातफेरी में भोपाल से रवीन्द्र श्रीवास्तव, राकेश श्रीवास्तव अजमेर से निर्मल प्रभु कोटा से हरिनारायण शर्मा दमोह से कपिल सोनी,ललित कृष्ण असाटी, सीताराम सोनी नरयावली से रामनारायण विश्वकर्मा मोतीलाल,लखन हरई से शंकरलाल, अशोक, गैसाबाद से कमल ,बलदेव ,खुरई से महेश श्रीवास्तव, राधामोहन माहेश्वरी, देवेश चौरसिया, ललित राजपूत सेमरा (ढाना)से रामेश्वर बलराम ,गोविन्द राहतगढ़ से पप्पू अग्रवाल आदि भक्तों ने भाग लिया ।
प्रभातफेरी पश्चात् 10 बजे से भजन संकीर्तन एवं धर्मप्रवचन के माध्यम से श्रीराधातत्व एवं उनकी महिमा पर प्रकाश डाला गया। दोपहर 12.30 बजे श्रीराधारानी जी का महाअभिषेक एवं आरती का दर्शन सभी भक्तों ने किया। तत्पश्चात् एक विशाल भण्डारे का आयोजन हुआ।
यह आयोजन श्रीविरही जी महाराज के कृपापात्र नित्यलीला प्रविष्ट ऊँ भगवद्पाद श्रीश्री 108 श्री चक्रधर प्रसाद ब्रह्मचारी जी भक्ति शास्त्री जी महाराज के कृपाआशीर्वाद से एवं उनके प्रिय शिष्य श्रीहरेकृष्ण दास ब्रह्मचारी जी की पावन सन्निधि में सम्पन्न हुआ। जिसमें श्री गौरहरि संकीर्तन मण्डल वं श्री चैतन्य प्रेमभक्ति वैष्णव संस्थान सागर के सभी भक्तों का विशेष योगदान रहा। कल बुधवार को श्री गुरुधाम में श्री भागवत जयंती के उपलक्ष्य में विविध भक्ति अनुष्ठान सम्पन्न होंगे।
फिर से धरती मुसकाएगी
फिर गीत खुशी के गाएगी
फिर फूल खिलेंगे बगिया में
फिर से सावन रुत आएगी।
यह धरा पढ़ाती है हम को अति कोमलता से पाठ कई सब याद रखें अथवा इतनी निष्ठुरता से समझाएगी।
KBC : अमिताभ ने मप्र सरकार से कहा :आरक्षक पति-पत्नी की पोस्टिंग मंदसौर में कर दीजिए ना, क्या जाता है आपका
दिवाली विशेष : लेखक- वरिष्ठ पत्रकार -कमलेश तिवारी
सागर वॉच । दीपवली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने भक्तजन कई उपाय करते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग इस बात से अंजान हैं कि खंडहरों, निर्जन ईलाकों मे किसी पेड़ से लिपटी पीले रंग के धागेनुमा बेल अमरबेल कहलाती है व यह लक्ष्मी जी की प्रतीक मानी जाती है।
ऐसी मान्यता है कि जिस पूजन स्थल या पूजन सामग्री में अमरबेल मौजूद रहती है उस घर या स्थल पर लक्ष्मी जी का सहज आगमन होता है। इस बेल का धार्मिक महत्व के साथ औषिधीय महत्व भी बताया जाता है। इसमें बुढ़ापे को थामने की ताकत होती है। अंग्रेजी मे जिसे एंटी ऐजिंग गुण के रूप में जाना जाता है।
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इसके अलावा गृह-शांति व वास्तु पूजन में भी इसका प्रयोग होता है। आयुर्वेद व अध्यात्म ही नहीं साहित्य में भी इसका काफी उल्लेख किया गया है। कवि रहीम ने अपने एक दोहे मे अमरबेल का जिक्र करते हुए लिखा है “ अमलबेल बिनु मूल की प्रतिपालत है ताहि, रहिमन ऐसे प्रभुहि तहिं, खोजत फिरिए काहि।” यानी जो ईश्वर बिना जड़ की अमरबेल का भी पालन पोषण करता है ऐसे ईश्वर को छोड़कर बाहर किसी ढूंढते फिरते हो।
वर्तमान मे दुनिया भर की जान सांसत मे लाने वाले कारोना वायरस के उपचार के मामले मे भी केन्द्र सरकार के आयुष विभाग ने भी इस बीमारी के फैलाव को रोकने व बचाव मे अमर बेल के उपयोग का परामर्श जारी किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात व अन्य माध्यमों से कोरोना के बचाव के लिए पारंपरिक व भारतीय मूल की प्रचलित पद्धतियों को अपनाने की सलाह दे चुके हैं।
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बुंदेलखंड की आवोहवा अमरबेल के लिए पैदा होने के लिए मुफीद मानी जाती है। इसीलिए यह इस अंचल के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों मे नजर आ जाती हैं। बताया जाता है कि भारत के अलावा चीन, कोरिया, थाईलैंड व पाकिस्तान की पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों मे भी उपचार के लिए अमरबेल का उपयोग किया जाता हैं। विश्व मे इसकी करीब 180 प्रजातियां पाईं जातीं हैं। यह वैज्ञानिक जगत मे कुस्कुटा के नाम से जानी जाती है। भारत मे कुस्कुटा रिफ्लेक्सा बहुतायत मेंबेर, बबूल और सहपर्णी पेड़ों पर मिलती है।
अमलबेल के चिकित्सकीय गुणों के बारे मे फार्मोकोलाॅजी जर्नल्स में उल्लेख है कि इस अमरबेल में बुढ़ापे को रोकने, दर्द-निवारक, कृमिनाशक,नेत्र विकार, लीवर व किडनी के रोगों के उपचारक गुण भी होते हैं। बच्चों के शारीरिक विकास के लिए भी इसे लाभदायक बताया जाता है।
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प्रकृतिविद् किशोर पवार के मुताबिक अमरबेल अद्भुत होती है। इसमें न तो जड़ होती है और न ही पत्तियां। फिर भी सालों-साल जीवित रहती है। यह परजीवी जिस पेड़ पर लिपटती है उसी से भोजन-पानी प्राप्त करती हैंे। पौधे के नाम पर इसमें केवल पीला तना होता है और बिना सहारे के यह केवल एक हफ्ते से ज्यादा जीवित नहीं रह सकती है। इसलिए अंकुरित होते ही पोषण के लिए पेड़ से लिपट जाती है और धरती से उसका नाता हमेशा के लिए टूट जाता है।
इसके तने से निश्चित दूरी पर हिस्टोरिया नाम की जड़ें निकलतीं हैं जो इसे इसके पसंदीदा पेड़ से चिपकाए रखतीं हैं और यहीं जड़ें उसके लिए पेड़ से तैयार भोजन की आपूर्ति करती रहतीं हैं।
अनुसंधानकर्ता रूनयान के मुताबिक अमरबेल अपने पसंदीदा पेड़ की ओर उसकी गंध के सहारे बढ़ती है और अंकुरित होने के बाद एक घंटे के अंदर ही उस पेड़ से लिपट जाती है। जमीन से कोई संबंध नहीं रहने के कारण इसे कहीं-कहीं आकाश बेल भी कहा जाता है। बंगाल में यह स्वर्णलता के नाम से जानी जाती है।
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सागर वॉच। सागर के studio Anashté द्वारा दुर्गा स्तुति पर कथक नृत्य की प्रस्तुति तैयार की है। बुंदेलखंड का यह ऐसा पहला कार्य है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयोजन हुआ है ।
इस दुर्गा स्तुति का संगीत फ्रांस की मनुएला लिसन्ज़ातो (manuela licenziato ) संजोया है । जबकि नृत्य कत्थक शैली में नृत्यांगना स्वाति यादव ने किया है । दुर्गा स्तुति को स्वर सागर की गायिका लीना घोष, जॉली घोष एवं गायक पार्थो घोष ने दिया है।
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सागर के युवा संगीतकार यश के.जी श्रीवास्तव बताते है कि यह अद्भुत प्रयास है जिससे भविष्य में भारतीय संगीत को समूचे विश्व में लोकप्रिय बनाया जा सकता है । ऐसी परियोजना पहली बार सागर के कलाकारों द्वारा कि गई है जिसमें अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ मिलकर नृत्य एवम् संगीत का सर्जन किया है