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Sagar  Watch News

वै
से तो मप्र के स्थापना दिवस पर प्रदेश भर में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।  इन कार्यक्रमों अधिकारी और मंत्रीगण शामिल हो रहे हैं। प्रदेश सरकार ये कार्यक्रम आयोजित कर रही है। 

लेकिन इस कार्यक्रम की सूचना को लेकर जनसंपर्क विभाग ने नया ही कारनामा कर दिया है। इस कार्यक्रम को लेकर उसके द्वारा जारी सूचना को पढ़कर ऐसा लग सकता है कि वे कम से कम  किसी लोकतान्त्रिक देश में तो नहीं रह रहे हैं  सागर जिले में मप्र के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम अगर जनसम्पर्क विभाग की भाषा में कहें तो "सागर कलेक्टर के आदेश से यह कार्यक्रम आयोजित हो रहा है।" 

शासकीय सूचना को पढ़कर पाठक गण ऐसा भी समझ सकते हैं कि कलेक्टर के आदेश से आयोजित हो रहे कार्यक्रम में जो भी होगा वह सब उनके आदेश के तहत ही होगा  मतलब कार्यक्रम में कौन-कौन शामिल होगा, कौन गाना गाएगा, कौन तबला बजायेगा, कौन मंच पर बैठेगा सब कुछ आदेश के तहत ही होगा। 

उनके आदेश पर ही... (आमंत्रण पर नहीं ?) मध्य प्रदेश स्थापना दिवस की अवसर पर महाकवि पद्माकर सभागार में आयोजित कार्यक्रम में बुंदेलखंड की मशहूर गीतकार कविता शर्मा अपनी प्रस्तुति  देंगीं । मानने को तो यह भी माना जा सकता है कि इसी  आदेश के तहत ही  कार्यक्रम में मंत्री और  अन्य जनप्रतिनिधि मौजूद रहेंगे। 

हालाँकि यह सामान्यतः सभी जानते हैं कि यह पूरा कार्यक्रम मप्र सरकार के निर्देशों के तहत आयोजित किये जा रहे हैं।  जिनका हर जिले स्तर पर आयोजन का कामकाज जिला कलेक्टरों की निगरानी में हो रहा होगा लेकिन जनसम्पर्क विभाग की भाषा में सब कुछ महज कलेक्टर के आदेश से होना बताया जा रहा है। यह भाषा किसी लोकतान्त्रिक देश की सरकारों की बोली के अनुरूप नहीं लग रही है। 

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मे
यर-इन-काउंसिल की बैठक में नगर विकास के विभिन्न विषयों पर चर्चा उपरांत निर्णय लिये गये। उनमें से कुछ मुद्दों पर पक्ष और विरोध में चर्चाओं का  दौर शुरू हो गया है और उन विषयों को लेकर तरह-तरह के सवाल और प्रतिक्रियाएं सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं हैं।    

सबसे ज्यादा आग पानी  के मुद्दे पर लगी है। परिषद् ने शहर में जल-कर में बढ़ोतरी करने का फैसला लिया है। लोगों का कहना है कि शहर में वर्षों से महीने के आधे दिन पानी की आपूर्ति होती है लेकिन पैसा महीने भर का वसूला जाता है यह  कैसे उचित माना जा सकता है। 

 यह सवाल भी उठाया जा रहा  है कि एक ओर तो नगर निगम जल-कर बढ़ाना चाह रही है वहीँ दूसरी ओर वह ने बाँध के निर्माण के बिना शहर को चौबीसों  घंटे पेयजल आपूर्ति करने से हाथ खड़े कर रही है। 

लोगों का यह भी कहना कि  जातिगत आधार पर उपभोगताओं से अलग-अलग दर से जल-कर वसूलना भी संविधान कि भावना के अनुरूप नहीं बताया जा रहा है। इस मामले पर निगम प्रशासन जनप्रतिनिधि  चुप्पी साधे हुए हैं। 

जल-कर मुद्दे पर चुटकी लेते हुए एक नगर वासी ने इसे जनता के लिए नगर निगम के ओर  से धनतेरस और दिवाली का तौहफा बताया है। वहीं एक और  तंज  सामने आया है जिसमें २० बरस बीत जाने के बाद भी नगर कि पेयजल आपूर्ति नहीं दुरुस्त नहीं कर पर पाने को निगम कि सबसे बड़ी उपलब्धि बताया गया है। 

 महिला स्व सहायता समूह द्वारा पानी कि गुणवत्ता परीक्षण  कार्य कराये जाने हेतु  सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले स्व सहायता समूहों का चयन करने के संबंध में स्वीकृति प्रदान की गई।  साथ ही जन नायक स्व.कर्पूरी ठाकुर पूर्व मुख्यमंत्री बिहार सरकार की प्रतिमा पूर्व प्रस्ताव अनुसार अटल पार्क में लगानेका  विषय को परिषद में भेजने का निर्णय लिया गया। 

 बैठक में वर्तमान नगर निगम भवन की जगह आधुनिक व्यवसायिक परिसर निर्माण हेतु ऑनलाईन निविदा आमंत्रित की गई। जिसमें उच्चतम आफर  संस्था  को  प्राप्त हुआ वह भी चर्चा का विषय बना हुआ है।  निगम के कामकाज पर पैनी नजर रखने वाले लोगों का कहना है निगम के कर्ताधर्ताओं को इसके अलावा किसी का काम रास ही नहीं आता है ? 

 सागर स्मार्ट सिटी लिमिटेड सागर द्वारा निर्मित शी-लांज कि भी अपनी अलग ही व्यथा है।  निविदा पर निविदा  बुलाये जाने के बाद भी कोई इन का काम काज सँभालने को तैयार नजर नहीं आ रहा है।  जिसके चलते वर्षों पहले बनकर तैयार हो जाने के बाद भी इन "शी-लांज" महिलाओं को राहत न दी पाने के लिए मजबूर बनीं हुईं हैं।


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स बात से शायद ही कोई इंकार करेगा कि यह आम जनता का अधिकार है की उसे उन व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के  नाम बताएं जाएँ जहां से   जिला प्रशासन द्वारा  उनके  अमानक स्तर की खाद्य सामग्री जब्त कर नष्ट की गयी  है।   लेकिन आश्चर्यजनक रूप से देवरी में हुयी ऐसी कारवाई में जिला प्रशासन ने जिला जनसम्पर्क से जारी अधिकृत जानकारी में इन नामों को शामिल नहीं कराया। 

जिला प्रशासन ने मंगलवार को  देवरी  में खाद्य सुरक्षा प्रशासन एवं खाद्य आपूर्ति एवं राजस्व विभाग द्वारा संयुक्त कार्यवाही कर  मिठाई दुकानों से मावा पेडा, चेना,मावा, पनीर के नमूने लिये गए।

कार्रवाई के तहत  चांदी के वर्क की जॉच प्राथमिक स्तर पर करने पर अमानक पाए जाने पर 20 किलोग्राम बर्फी मौके पर नष्ट कराई गई। 

इस कार्यवाही के दौरान 5 घरेलू गैस सिलेंडर का उपयोग व्यावसायिक कार्यों में करते पाये जाने पर  जब्त  किये गए । 

लेकिन पूरी कार्रवाई में किस दुकान पर खाद्य सामग्री के नमूने लिए गए, किस दुकान से व्यवसायिक उपयोग में लिए जा रहे घरेलू गैस सिलिंडर जब्त किये गए उन प्रतिष्ठानों के नामो को सार्वजनिक नहीं करने कि वजहों पर अटकलों का दौर गर्म है

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लेक्टर के ताजा निर्देश अपने आप में बहुत कुछ कह रहे हैं। जानकारों के मुताबिक ऐसे फरमान आला अधिकारी सामान्यतः तब ही जारी करते हैं जब कोई समस्या दायरे से बाहर होती  नजर आने लगती है। 

ताजा  निर्देश में अधीनस्थ अमले को  सचेत किया गया है कि  किसी भी सूरत में शासकीय भवनों में किसी भी प्रकार का कब्जा न हो। और अगर ऐसे हालात पहले से ही मौजूद हो या बनें तो  अवैध रूप से कब्जाधारियों पर पुलिस कार्रवाई की जाए।  

कलेक्टर सख्ती से  कहा कि जिले के सभी शासकीय भवनों मुख्य रूप से स्कूल, आंगनबाड़ी, पंचायत भवन, पशु चिकित्सालय में यह प्रमुखता से सभी अधिकारी निरीक्षण करने के उपरांत सुनिश्चित करें कि किसी भी शासकीय भवन पर अन्य किसी भी स्थानीय व्यक्ति का कब्जा नहीं हो। 

उन्होंने कहा कि यदि किसी व्यक्ति का किसी भी प्रकार का शासकीय भवन पर कब्जा पाया जाता है तो तत्काल उसके खिलाफ पुलिस कार्रवाई सुनिश्चित की जावे एवं प्रतिवेदन प्रस्तुत करें ।

इन निर्देशों के तहत  समस्त एसडीएम एवं जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी से  एक ऐसा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए भी कहा है  जिसमें वे बताएँगे कि उनके क्षेत्र में किसी भी शासकीय भवन में किसी भी प्रकार का किसी भी व्यक्ति का अवैध रूप से कब्जा नहीं है एवं सभी भवनों में शासकीय कार्य संचालित हो रहे हैं।

कलेक्टर   ने कहा कि स्कूल एवं आंगनबाड़ी कक्षों में विशेष तौर पर देखा जाए कि सभी भवन शैक्षणिक कार्य के लिए ही उपयोग हो रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि सभी स्कूल एवं आंगनबाड़ी  भवनों के बाजू में ही मध्यान भोजन बनाने की अलग से व्यवस्था की जाये।  किसी भी स्कूल ,आंगनबाड़ी भवन में शैक्षणिक कार्य के अलावा कोई भी अन्य गतिविधि संचालित नहीं होनी चाहिए।


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दि
वाली जैसे त्योहारों के समय बाजार में भारी भीड़ का उमड़ना स्वाभाविक है।  ऐसे में यातायात को  सुचारु बनाये रखने के लिए यातायात पुलिस द्वारा ख़ास इंतज़ाम किया जाना भी लाजमी होता है।  भले ही इससे लोगों को आम दिनों के मुकाबले कुछ ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती हो। 

सागर शहर के मुख्य बाजार तीनबत्ती से लेकर मस्जिद और मस्जिद से राधा टाकीज चौराहा, विजय टाकीज चौराहा और भंडारी तिराहा तक जबरदस्त जाम के हालात बनते हैं। 

सड़क के दोनों और बैठने वाले फेरी वाले, फल-सब्जी के ठेले वाले और दुकानों के सामने लगभग स्थाई पार्किंग मानकर खड़े चार पहिया वहां शहर की यातायात व्यवस्था को साल भर अव्यवस्थित बनाये रखती है।  इसको सुचारु बनाने के यदा-कदा यातायात पुलिस के प्रयासों को छोड़े दें तो पूरी व्यवस्था भगवान् भरोसे चलती नजर आती है। 

कहा जाता है कि अगर नए ज़माने के बच्चों से पूछा जाये कि यातायात पुलिस का काम क्या है ? वे तपाक से उत्तर देंगे हेलमेट नहीं लगाने और दोपहिया वहां पर तीन सवारी बैठाने वालों  में से कुछ लोगों का चालान करना। 

लोगों की शिकायत बानी रहती है कि यातायात पुलिस चौराहों- चौराहों पर जिस मुस्तैदी से दो पहिया वाहनों का चालान हेलमेट नहीं पहनने और ज्यादा सवारी बैठाने  वालों का करती है वह चुस्ती बिना नम्बर प्लेट लगे वाहनों, तेज रफ़्तार तेज आवाज करते निकलते वाहनों का चालान करने में नहीं दिखाती है। 

स्मार्ट सिटी के कैमरे  भी वाहनों का चालान करते हैं लेकिन उनका शिकार भी वो वहां चालक बनते हैं जिनकी गाड़ियों पर सलीके से नम्बर  होता है।  यहां भी बिना नम्बर प्लेट वाले वहां चालक बच जाते हैं।  यानी जो जितने नियम से चलेगा वह उतना ही अधिक स्मार्ट सिटी के  वहां निगरानी तंत्र का शिकार बनेगा। 

ऑटो रिक्शा चालक बड़ी बेशर्मी से खासकर मेडिकल कॉलेज के सामने सादा के बीचों-बीच गाड़ी लगाकर सवारियों का इंतज़ार करते हैं लेकिन उनकी इस गुस्ताखी की सजा देने में यातायात पुलिस या तो रूचि नहीं लेती या फिर यह सब उसके बस का नजर नहीं आता।  ऑटो रिक्शा चालकों की यह धींगा मस्ती आपको शहर के सभी मुख्य चौराहों पर नजर आ जाएगी। 

अतः शहर की जनता यातायात को सुचारु बनाने के लिए तैनात पुलिस के नुमाइंदों से अपेक्षा रखती है कि वे सही मायने में शहर के यातायात को व्यवस्थित बनाने की दिशा में  सिर्फ  काम करते दिखे नहीं बल्कि हकीकत में काम करें ।  

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त्यो
हारों का मौसम में खाद्य सुरक्षा विभाग के महकमे के सक्रियता देखते ही बनती है। साल के बाकी समय में हाथ पर हाथ धरे बैठा रहने वाला विभाग त्योहारों के समय हिरणों जैसी कुलाछें  भरने लगता है। एक दिन पहले शहर की एक मिष्ठान की दूकान से 300  किलो दूषित मावा जब्त किया था आज राहतगढ़ से 30 किलो दूषित मावा जब्त किया है।  इससे लोगों के मन में सहज ही यह सवाल उठ सकता है कि अगर छोटे-छोटे स्थानों से इतनी बड़ी मात्रा में दूषित मावा जब्त हो रहा है तो शहर में  न जाने कितनी बड़ी मात्रा में ऐसा दूषित मावा खपाया जा रहा होगा। 

जिले में स्कूलों में अंधविश्वासों को दूर करने के लिए जादू नहीं विज्ञान है नाटिका का आयोजन किया जा रहा है। यह अच्छी पहला है लेकिन अगर इसके साथ आम जनता के लिए कोई एक ऐसी नाटिका भी बना का दिखने लगे जो लोगों को बता सके कि  विकास के जादू के पीछे भी एक विज्ञान काम करता है जिसे कमिशन के खेल के नाम से जाना जाता है। हालाँकि जनता को यह बताने की जरूरत नहीं है इस कमीशन के खेल के उस्ताद कौन-कौन माने जाते हैं। 

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जि
ला आयुष अधिकारी ने नवम आयुर्वेद दिवस " वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार "पर कार्ययोजना के  विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद की अहमियत के बारे में जागरूक किया।  

हालाँकि कोविड के दौर के बाद से समाज का बड़ा तबका भी इस बात को अच्छे से समझ गया है कि पारम्परिक चिकित्सा विद्याएं काम खर्चे में और प्राकृतिक उत्पादों से सेहतमंद बने रहने में मदद करतीं हैं।  

लेकिन  अन्य कथित तौर पर आधुनिक मानीं जाने वालीं चिकित्सा पद्धतियों के दायरे में आने पर मरीज  को बीमारी से मुक्ति मिले या न मिले पर उसको कैसे अपनी  मेहनत  कमाई से हाथ धोना पड़ता है। 

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जी
.एस. कालेज ऑफ कामर्स एण्ड इकानामिक्स, जबलपुर के प्रोफेसर डा. विनोद मिश्रा रानी अवंती बाई लोधी विश्वविद्यालय सागर के प्रथम कुलपति होंगे। कुलाधिपति राज्यपाल मंगू भाई पटेल द्वारा नियुक्ति आदेश जारी किया गया है।

एक नजरिये से  इस नियुक्ति को बेहद ख़ास बताया जा रहा है।  जानकारों का कहना है शिक्षा के क्षेत्र में यह नियुक्ति एक मील का पत्थर साबित होने वाली है।  वह इस लिए कि अब राजनैतिक दलों के पदाधिकारियों के लिए भी शिक्षा संस्थानों के कुलगुरु बनने का रास्ता खुल गया है। 

लोग खुलकर चर्चा कर रहे हैं की भारतीय जनता पार्टी में कभी जिलाध्यक्ष रहे  प्रोफेसर साहब के कुलगुरु बनने से पार्टी के अन्य  पदाधिकारियों की भी बांछे खिली नजर आने लगीं हैं। 

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स्था
पत्य कला की बेमिसाल कृति ताजमहल अपनी   खूबसूरती के लिए दुनिया भर में मशहूर है।  उसी ताजमहल की सुंदरता  बढ़ाने वाली दूधिया संगमरमर की जालियों के सामान नक्काशीदार जालियों से सागर की लाखा बंजारा झील को सजाया जा रहा है। झील के सौंदर्यीकरण की कवायद की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। 

लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं  जिनको अच्छाई पचती ही नहीं है। अब सागर तालाब के बारे में उनका कहना है कि  झील की की शान पानी से लबालब भरे होने में है और पानी की पहचान उसके निर्मल स्वरुप से होती है।  अब न तो झील पानी से लबालब है और न ही पानी ज्वालमुखी और खरपतवार से मुक्त है इस सब के बिना झील को सुन्दर कैसे माने। 

इन जल-कुकड़ों का कहना है कि  झील  की सफाई को दरकिनार कर बाहरी सौंदर्य कर का गुणगान कर अपनी पीठ थपथपाने वाले के काम को उपलब्धि मानने की बात बहुत से लोगों के गले नहीं उतरेगी। 

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शु
क्रवार को  कलेक्टर कार्यालय में हड़कंप मच गया।  जल्दी ही आग की तरह सभी विभागों में खबर पहुँच गयी की कलेक्टर औचक निरीक्षण पर हैं और इस बार ख़ास तौर पर देर से आने वाले कर्मचारी निशाने पर हैं। 

यह जानकार अजीब सा लगता है पर यह चर्चा काफी हद तक सही है कि कलेक्ट्रेट के बाबू वक्त पर कुर्सी पर पहुंचने में हेठी महसूस करते हैं।  इसलिए जो बाबू जितनी देर से कार्यालय पहुँच ता  है वह उतना ही कद्दावर और पहुँच वाला माना जाता है। 

कलेक्टर की औचक कार्रवाई ऐसे कर्मचारियों के लिए बड़ी नागवार गुजरी लग रही होगी और उन 56  कर्मचारियों को तो और ही ज्यादा तकलीफ हो रही होगी जिनको कार्यालय में गैर हाजिर होने की वजह से कारण बताओ नोटिस थमा दिया गया  है। 

ऐसे नोटिस से नवाज़े गए  बाबुओं में आबकारी विभाग के 8, भू-अभिलेख के 16, आदिम जाति विभाग  के 17, महिला एवं बाल विकास विभाग के 12, ओबीसी विभाग के 1 तथा नगरीय विकास  से 2 अधिकारी/ कर्मचारी शामिल हैं। 

निरीक्षण के दौरान कलेक्टर ने  कार्यालय परिसर में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखने की भी हिदायत दी है । अनावश्यक पड़ी इलेक्ट्रॉनिक सामग्री या फर्नीचर    पर अपलेखन की कार्यवाही करने को कहा । 

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इसी प्रकार यदि कार्यालय में कंप्यूटर, प्रिंटर आदि अनुपयोगी है तथा उनमें सुधार की गुंजाइश है, तो उन्हें रिपेयर करा कर  शासकीय छात्रावासों  या अन्य संस्थाओं में देने की कार्यवाही भी सुनिश्चित करें, जिससे की छात्रावासों  में पढ़ रहे बच्चों को सुविधा मिलेगी।

कलेक्टर ने कलेक्ट्रेट कार्यालय में नेटवर्किंग प्रिंटर स्थापित करने के भी निर्देश दिए हैं, जिससे कि एक प्रिंटर नेटवर्किंग रूम में ही विभिन्न विभागों से संबंधित प्रिंटिंग का कार्य किया जा सकेगा।

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मेयर-इन-काउंसिल की बैठक में महापौर संगीता तिवारी द्वारा नगर विकास एवं सौन्दर्यीकरण के संबंध में पूर्व की बैठकों में लिये गये निर्णयों की समीक्षा की गई। अगर बैठक की बातचीत पर गौर किया जाए तो बड़ी ही रोचक और चौकाने वाली कहानी सामने आती है बैठक का मजमून पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे यहाँ उठाईं गयीं समस्याएँ पहली बार निगम प्रशासन के ध्यान में लायीं गयीं हैं और निगम बड़ी तत्परता से उन्हें हल करने जा रहा है

बैठक में महापौर यानी शहर के प्रथम नागरिक ने एक से ज्यादा गंभीर मामलों का जिक्र किया उन्हें सुनकर निगम प्रशासन ने जैसी प्रतिक्रिया दी उसे जानकार ऐसा लगता है इन मुद्दों के बारे में निगम प्रशासन को भनक तक नहीं लगी ?

जलभराव के स्थान चिन्हित पर उपचार बाकी 

बैठक में शहर में जलभराव से संबंधित विषय पर लिये गये निर्णय अनुसार निगमायुक्त ने  बताया कि शहर में जिन-जिन स्थानों पर जलभराव होता है ऐसे स्थानों को चिन्हित कर लिया गया है, लेकिन  जलभराव न हो इसके लिये कार्य किया जा रहा है। यानि काम अभी पूरा नहीं हुआ है। 

निल बटे सन्नाटा 

वार्डो में बिजली की समस्या है उसको हल करने के लिये बैठक में निगम के नुमाइंदों के जवाब  सुनकर लगता है  कि  सबसे पहले  स्मार्ट सिटी एवं नगर निगम की टीम बनाई जाएगी फिर कार्य योजना तैयार की जाएगी उसके बाद समस्याओं के समाधान का काम किया जायेगा यानी फिलहाल वार्डों की बिजली समस्या के हल के इंतज़ाम "निल बटे सन्नाटा " ही माने जाएँ  । 

फैसला नहीं सिर्फ चर्चा 

इस संबंध में प्रकाश प्रभारी ने बताया कि पहले  विद्युत सामग्री के लिये जो टेंडर जिस ठेकेदार का स्वीकृत हुआ था वह काम नहीं कर रहा है। इस संबंध में ऐसे ठेकेदारों को ब्लैक लिस्टेड करने  के विषय  पर  सिर्फ चर्चा की गई पर कोई  फैसला नहीं हुआ है । 

वार्डों में  पार्षद निधि के तहत लंबित विकास कार्यों के बारें में निगमायुक्त को कोई जानकारी नहीं है न इसलिए लोककर्म विभाग से कहा गया है कि वार्डों के लंबित कामों की जानकारी तैयार कर बताये। 

महापौर को पता है पर निगम अनभिज्ञ 

बैठक में  महापौर ने बताया कि शहर में बिना नक्शा मंजूर कराये भवनों का निर्माण चल रहा है।  जबकि  ऐसी कोई जानकारी निगम के अमले के पास नहीं है।  तभी तो महापौर द्वारा यह मुद्दा उठाये जाने पर निगमायुक्त ने भवन भूमि शाखा के इंजीनियरों से वार्डों का भ्रमण कर हकीकत का पता लगाने के निर्देश दिए हैं। 

महापौर ने माना डेयरी विस्थापन हुई विफल 

महापौर ने एक और धमाके दार जानकारी बैठक में दी है जिससे ये साफ़ हो गया है कि नगर निगम की बहुचर्चित डेयरी विथापन योजना पूरी तरह से असफल हो गयी है।   महापौर ने कहा कि विस्थापन स्थल से शहर में अधिकांश डेयरियां वापिस लौट आयी है जिससे लोगों को यातायात में परेशानी हो रही है इस पर सख्ती से कार्यवाही की जाये। 

इस सिलसिले में  निगमायुक्त ने कहा कि डेयरी विस्थापन स्थल पर दूध के विक्रय एवं गोबर गैस प्लांट लगाने हेतु आवश्यक कार्यवाही की जा रही है तथा बैंकों से डेयरी संचालकों को ऋण उपलब्ध कराने के लिये प्रयास किये जा रहे है। ये सब जानकार शायद लोगों के मन में सवाल आ सकता है कि जब ज्यादातर डेयरीयां वापस शहर ही आ गयीं हैं तो विस्थापन स्थल पर इतनी मशक्कत करने की क्या जरूरत है?

कुत्तों की नसबंदी "निविदा" में अटकी 

जिला चिकित्सालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक अस्पताल में है महीने एक हज़ार से ज्यादा कुत्तों के हमलों के शिकार पीड़ित आ रहे है और नगर निगम  आवारा कुत्तों की रोकथाम के लिये निविदा जारी करने की प्रक्रिया में ही उलझा है।  इस से साफ़ होता है की आवारा कुत्तों द्वारा लोगों को काटे जाने की समस्या से निपटने के प्रति निगम कितना गंभीर है। 

पस्त निगम ने चुस्ती से काम करने का वादा 

दिन प्रति दिन गंभीर होती यातायात ठप्प होने, जगह-जगह अपशिष्ट निकास की व्यवस्था से होते रिसाव और  सालों से बन कर तैयार खड़े और आम जनता की सुविधा के लिए  शुरू होने को तरस रहे शी-लाउन्ज  की बदहाली को सुधरने के लिए भी निगम के नुमाईंदों ने बड़े ही बेमन से कुछ करने की इच्छा भी जताई है। 

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Sagar watch News/ देवरी विधायक द्वारा सरकारी कर्मचारियों  मनमानी से परेशान होकर इस्तीफ़ा लिख देने की घटना बेहद गंभीर है।  ये मौजूदा सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करती है। इस घटना से यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि  एक विधायक, वो भी सत्ताधारी पार्टी के, जो अपनी दबंगियत  के लिए भी जाने जाते हैं,  अगर उनकी बात सरकारी मुलाज़िम नहीं सुन रहे हैं तो आम जनता के साथ यह  कर्मचारी कैसा सुलूक कर रहे होंगे इसकी कल्पना करने से भी शरीर में भय की लहर दौड़ जाती है। 

सरकारी कर्मचारियों के बेलगाम होते जाने की पीछे कई कारण गिनाये जा सकते हैं  पर उनमें से एक करना दशकों तक एक ही पार्टी की सरकार रहना भी हो सकता है।  लम्बे समय तक एक ही पार्टी के नुमाईंदों के सत्ता में रहने से सरकारी मुलाज़िम जनप्रतिनिधियों के अच्छे-बुरे सभी कामों से परिचित होने व उनकी कमियों से वाकिफ होकर उनकी उपेक्षा करने की जुर्रत भी करने लगाता है।

इसके अलावा  लोकतान्त्रिक  व्यवस्था में पार्टियों की सरकारें बदलने पर सत्ताधारी पार्टी के अलावा विपक्षी पार्टियों की प्रतिनिधियों की बात भी सरकारी मुलाज़िम सुनता था उनका दवाब भी महसूस करता था।  एक ही पार्टी के नुमाईंदों से लम्बे समय तक संपर्क में रहने, लेनदेन में भागीदार बनने और विपक्षी पार्टियों के दबाव नहीं रहने के कारण  भी  सरकारी मुलाज़िम  के  बेलगाम होते जाने की चर्चाएं जोर  पकड़तीं जा रहीं हैं। 

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 बोतल बंद पानी बेचने वालों, प्लास्टिक के प्यालों में चाय बेचने  वालों की आज साँसे फूल गयीं होगीं।  उन्हें दिमाग पर जोर डालना पद रहा होगा की अगर सरकारी कार्यालयों में से बोतलबंद पानी की आपूर्ति बंद हो गयी तो इस नुकसान की भरपाई कैसे होगी? चायवाले सोच रहे होंगे अब बड़ी तादाद में कांच के गिलास या चीनी मिटटी के प्यालों का प्रबंध कहाँ से करें? एक दम से आये इस बड़े खर्चे का बोझ कैसे सह पाएंगे?

बात यहीं पर नहीं रुकेगी।  पहले ही दिन से कम से कम  कलेक्ट्रेट  कार्यालय में चपरासियों को सभी कर्मचारियों को पानी कांच के गिलास में पिलाना पड़ेगा।  इसका मतलब है काम से कम सौ-दौ सो गिलास रोज धोने पड़ेंगे।  

ये तो गजब हो गया इतना काम तो उन्होंने सालों से नहीं किया और दिन भर गिलास धोयेंगे तो कार्यालय की फाइलों का आवागमन प्रभावित होगा।  बताइये भला फाइल को एक टेबल से दूसरी टेबल तक पहुँचाना और उनकी गति "वजन" के हिसाब से कम-बढ़ करवाना जैसे जरूरी काम भी तो प्रभावित होंगे। 

खैर लोग कुछ भी कहें साहब का यह आदेश है तो काफी अच्छा लेकिन ये जितना पर्यावरण हितैषी है उतना ही उन व्यापारियों और कमीशन एजेंटों को  दुश्मन नजर आ रहा है जो सरकारी कार्यालयों में बोतल बंद पानी कि आपूर्ति और अन्य प्लास्टिक पैकिंग वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री से मुनाफा कमा  रहे थे ?

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साहब बहादुर  ने एक बार फिर एक ऐसा आदेश जारी किया है उसके जमीन स्तर  अमल में आते देख पाने की चाहत में अनायास ही  मुंगेरी लाल और उनके हसीं सपने के धारावाहिक की याद आ जाती है। 

अब पता नहीं साहब  को इस बात का अहसास है भी या नहीं कि  कार्यालयों में गुटका खाने पर रोक लगी तो  ज्यादातर सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का तो कार्यालय आने के बाद काम करने का मूड ही नहीं बन पायेगा। इससे तो आम जनता ही परेशान होगी। 

अधिकांश  सरकारी मुलाज़िमों का ऐसा मानना है कि  एक तो, गुटका मुंह में भरे काम करने पर फरियादी उनसे ज्यादा सवाल नहीं करता  क्यों वे जितने भी सवाल करते हैं उनमें से अधिकाँश सवालों के जवाब   गुटकावीर मुलाज़िम सिर्फ सिर हिला कर और  आँखे मटकाकर ही देता है जिससे आधी से ज्यादा बातें फरियादी के समझ में ही नहीं आतीं और वह चुप रहने में ही भलाई समझता  है। 

गुटकावीरों का यह भी मानना है की गुटका खाने और उसे बार थूकने जाने से जहां एक और कर्मचारी का मन भी तरोताज़ा हो जाता है दूसरा सेहत के हिसाब से दिनभर चलाफिरी भी होती रहती है।  इससे सुबह-शाम   घूमने जाने या कसरत करने की जरूरत भी नहीं रह जाती है। 

इसका एक तीसरा पहलू भी है। अगर कार्यालयों में गुटका खाने पर रोक लगाने में यह आदेश कारगर हुआ तो कार्यालयों में गुटका-वीरों  द्वार दिन भर कुछ-कुछ अंतराल के बाद गुटका में जर्दा मिलाने के लिए गुटका के पाउच को हिलाने से उत्पन्न होने वाला "छिक-छिक छिक" करने वाला मधुर संगीत भी बीते दिनों के बात बन सकता है। कहा जाता है इस मधुर संगीत कि सुर लहरियां सुनकर लोग अंदाज़ लगा लेते हैं कि फलाने साहब या बाबू जी कार्यालय में ही हैं या अपनी सीट पर पहुँच गए हैं

कलेक्टर के इस कथित गुटका विरोधी आदेश  का दूसरा पहलू भी  शांत जल में छोटा सा कंकड़ डाल कर कुछ देर के लिए  पानी में तरंग पैदा करने जैसा लगता है।  अब तो ऐसा कहा जाने लगा है कि अगर बदलाव की बात करें तो इन आदेशों के जारी होनें की सिर्फ तारीखें बदलतीं हैं लेकिन जिन बातों के बदलाव के लिए इन्हें जारी किया जाता है वे बदस्तूर जारी बनीं रहतीं है। 

शालाओं और महाविद्यालयों के परिसर के बाहर स्थित चाय-पान की गुमटियों से गुटकों के बिक्री धड़ल्ले से चलती रहती है।  इस सबकी एक बड़ी वजह यही बतायी जाती है की शिक्षण संस्थाओं में ज्ञान बांटने वाले, ज्ञान लेने वाले और संस्थानों को दीगर कामकाज करने वालों में एक बड़ी संख्या उन लोगों की है जिन्हें समाज "गुटकावीर " के रूप में जानता है।  जिनका  आचार-विचार और शिष्टाचार सभी गुटके के फांक लगाए बिना जीवंत नहीं हो पाता  है।  

और पते की बात यह है कि  यही लोग गुटका विक्रेता गुमटी संचालकों के संकटमोचक बनकर सामने आते हैं और विक्रेताओं को ढांढस बांधते हैं कि घबराओ नहीं साहब नए -नए आये हैं हफ्ता-दो दिन की बात है फिर सबकुछ पहले जैसा ही चलेगा। 

इस बार देखते हैं क्या क्या बदलता है और क्या-क्या पहले जैसे ही चलता रहता है ?