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मध्यप्रदेश शासन  प्रदेश भर में कार्यालयों में "कागज़ रहित कार्य संस्कृति" (Paperless Work Culture) को बढ़ावा  के लिए कलेक्टर कार्यालयों  सहित सभी विभागों के कार्यालयों में ई- ऑफिस प्रणाली (e-Office System) लागू करने जा रहा  है। जिसकी शुरुआत जल्द ही सागर कलेक्टर कार्यालय   प्रारंभ करने के लिए  निर्देश जिला कलेक्टर  ने दिए हैं।

कलेक्टर संदीप जी आर ने कहा कि शासन के निर्देश अनुसार सभी कार्यालयों में ई-ऑफिस प्रणाली (e-Office System) लागू होना है जिसके तहत कागज का उपयोग सीमित होगा और कार्य करने में आसानी होगी तथा सभी कार्य समय सीमा में पूर्ण हो सकेंगे इस हेतु आवश्यक कार्रवाई तत्काल प्रारंभ करें।

उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार के द्वारा शासन के अधीनस्थ कार्यालयों और स्वायत्त निकायों में ई-ऑफिस मंच (e-Office Platform) लागू करने की योजना शुरू की है।  यह कदम सरकारी कार्यालयों में कागज़ रहित कार्य संस्कृति (Paperless Work Culture) को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है और यह ई-गवर्नेंस (e-Governance) की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

ई-ऑफिस (e-Office) एक डिजिटल कार्यस्थल  समाधान (Digital WorkPlace Solutions) है जो सरकारी कार्यालयों में कागज़ रहित कार्य संस्कृति को बढ़ावा देता है।  यह मंच (Platform) सुरक्षित और कुशल है, जो सरकारी कार्यालयों में डेटा सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित (Ensures Data Safety and Privacy) करता है। ई-ऑफिस को सरकारी कार्यालयों में समावेश करने से सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी ।

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दुनिया की प्रसिद्ध हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) में मध्यप्रदेश स्थित विश्व के सबसे बड़े रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर पॉवर पार्क और प्लांट के उत्कृष्ट प्रबंधन, संचालन और सौर ऊर्जा उत्पादन को आदर्श उदाहरण के रूप में पढ़ाया जा रहा है। 

रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्लांट न सिर्फ़ विश्व का सबसे बड़ा प्लांट है बल्कि विश्व में सबसे सस्ती दर पर व्यावसायिक उर्जा उत्पादन करने वाला प्लांट भी है। यहां से 3 रूपये 30 पैसे प्रति यूनिट बिजली अगले 25 सालों के लिए उपलब्ध हो सकेगी। 

मध्यप्रदेश में भरपूर सौर ऊर्जा (Solar Energy) है। यहां 300 से ज्यादा दिनों तक सूर्य का प्रकाश रहता है। विश्व बैंक के क्लीन टेक्नालाजी फंड के माध्यम से वित्त पोषित देश की पहली सौर परियोजना (Solar Project) है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि मध्यप्रदेश सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रदेश में जहाँ एक ओर विश्व की सबसे बड़ी रीवा सौर परियोजना (Solar Project) स्थापित होकर शुरू हो चुकी है। इस परियोजना को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) ने केस स्टडी के रूप में शामिल किया है। 

इसके साथ ही ओंकारेश्वर में माँ नर्मदा नदी पर दुनिया की सबसे बड़ी 600 मेगावाट क्षमता की फ्लोटिंग सोलर परियोजना भी विकसित की जा रही है। इसके अलावा प्रदेश के विभिन्न अंचलों में भी सौर ऊर्जा की कई छोटी-बड़ी परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। 

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि हाल ही में गुजरात के गांधी नगर में नवकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) को लेकर हुई राष्ट्रीय समिट में अनेक उद्योगपतियों ने मध्यप्रदेश में सौलर प्लांट लगाने की इच्छा जाहिर की है। राजधानी भोपाल में सरकारी भवनों और नागरिकों को अपने घर की छतों पर सोलर पैनल लगाने के लिये अभियान चलाया जायेगा। इन सभी प्रयासों से मध्यप्रदेश, सौर ऊर्जा प्रदेश बनने की अग्रसर हो गया है। 

 कैसे हुई शुरूआत 

आज विश्व के 10 सर्वाधिक बड़ी सोलर परियोजनाओं में से आधी भारत में है। रीवा सोलर पॉवर प्लांट इनमें से एक है। 

भारत सरकार ने वर्ष 2014 में सोलर पार्क योजना की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य सोलर पॉवर को बढ़ावा देना था। इस योजना में 500 मेगावाट क्षमता से ज्यादा की सोलर परियोजनाओं को सोलर पार्क (Solar Park) में शामिल किया गया और उन्हें अल्ट्रा मेगा सोलर पार्क (Ultra Mega Solar Park) कहा गया। 

केस स्टडी में बताया गया कि भारत में 4 लाख 67 हजार वर्ग मीटर बंजर भूमि आंकी गई है। इसका उपयोग सोलर प्लांट (Solar Plant) लगाने में किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में 1579 हेक्टेयर जमीन का आकलन किया गया, जिसमें 1255 हेक्टेयर बंजर जमीन सरकारी और 384 हेक्टेयर प्राइवेट जमीन शामिल है । 

इस प्रकार रीवा सोलर अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट (Ultra Mega Solar Park) बनने की शुरुआत हुई। रीवा सोलर पावर प्लांट की यात्रा दिलचस्प है। इसकी शुरुआत जून 2014 में बड़वार गांव में 275 हेक्टेयर जमीन आवंटन के साथ शुरू हुई। राज्य सरकार ने अप्रैल 2015 में रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट (Ultra Mega Solar Park) की स्थापना का अनुमोदन किया। 

दो महीने बाद रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड (Ultra Mega Solar Park)की स्थापना हुई जिसमें म.प्र. ऊर्जा विकास निगम और एसईसीआई के साथ 50 -50 प्रतिशत का जॉइंट वेंचर स्थापित हुआ। 

इसके बाद बड़वार, बर्सेटा देश, बरसेटा पहाड़, इतर पहाड़, रामनगर पहाड़ गांवों में 981 हेक्टेयर जमीन का आवंटन हुआ। वर्ष 2018-19 तक और भी गांव में उपलब्ध बंजर जमीन को परियोजना के लिए आवंटित किया गया। अप्रैल 2019 में दिल्ली मेट्रो रेलवे कॉर्पोरेशन को पावर सप्लाई देना शुरू हुआ। जनवरी 2020 से पूरी तरह से व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो गया।

Innovation-फसलों में नयी जान फूंक रहा है तरल यूरिया

 सागर 26 दिसम्बर 2021

खाद की किल्लत एवं पर्यावरण समस्या दूर करने के लिए जिले के किसान खाद के नए अवतार  तरल यूरिया (नैनो यूरिया) को अपना रहे हैं। जिले में इस साल 15 हजार बोतल नैनो यूरिया की खपत हो चुकी है, जिसे कृषि अधिकारी अच्छा रुझान मान रहे हैं। कृषि विभाग नैनो यूरिया को बढ़ावा भी दे रहा है। किसानों के बीच आयोजित सभाओं में नैनो यूरिया के इस्तेमाल की जानकारी दे रहे हैं।

विशेषज्ञों कि माने  तो  नैनो यूरिया में नाइट्रोजन की बर्बादी कम है, और पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी अच्छा है। इससे जलस्रोत दूषित होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। साथ ही किसानों के लिए यह किफायती भी है, इसका परिवहन व भण्डारण भी बहुत सुगम है।

कृषि विभाग के उप संचालक बी.एल.मालवीय ने कहा है कि नैनो यूरिया पत्तियों के माध्यम से काम करती है। जबकि दानेदार यूरिया जड़ के माध्यम से काम करती है। दानेदार यूरिया का इस्तेमाल करने पर 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा ही पौधों को मिल पाता है। बाकी जमीन और हवा में चला जाता था। 

जबकि नैनो यूरिया का इस्तेमाल करने पर इसके नाइट्रोजन का लगभग 80 से 85 प्रतिशत पौधों में जाता है। नैनो तरल यूरिया को 94 से ज्यादा फसलों पर देश भर में परीक्षण किया गया है। धान, आलू ,गेहूं, मक्का , प्याज , लहसुन और सब्जियों समेत सभी फसलों पर बेहद अच्छे परिणाम मिले हैं।

जैसीनगर क्षेत्र के ग्राम सेमरा गोपालमन के किसान बारेलाल विश्वकर्मा बताते हैं कि नैनो यूरिया का इस्तेमाल अपेक्षाकृत सुलभ है एवं परिणाम बेहतर हैं। खुरई क्षेत्र के ग्राम लहटवास के किसान आशीष जैन बताते हैं कि किसान अब नैनो यूरिया का इस्तेमाल किसान करने लगे हैं। उन्होने बताया कि यह फसल पर अच्छा काम कर रहा है। मैंने भी दो एकड़ में इस्तेमाल किया है। छिड़काव के लिए आधा लीटर नैनो यूरिया 150 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे किया जाता है।


अधिक नाइट्रोजन चाहने वाली फसलों में इसे दो बार 25-30 दिनों एवं 45-50 दिनों पर स्प्रे किया जाता है। नैनो तरल यूरिया के कणों का साइज इतना कम है कि ये पत्ती से सीधे पौधे में प्रवेश कर जाता है। पौधे की जरूरत के अनुसार नाइट्रोजन को रिलीज करता है। 

जबकि दानेदार यूरिया का नाइट्रोजन सिर्फ एक हफ्ते तक काम में आता है। इसमें बेकार जाने वाली यूरिया हवा, पानी, मिट्टी को सबको दूषित करता है। इसी प्रकार से बंडा क्षेत्र के ग्राम बासोना के किसान गोवर्धन विश्वकर्मा ने बताया कि मैंने एक एकड़ में नैनो यूरिया का छिड़काव किया था। इसका परिणाम ऐसा देखने मिला की, आसपास के किसान भी इससे प्रेरित हो रहे हैं।