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नाट्य समीक्षा:Rajesh Shrivastava,Sagar Watch
स्थान: स्वर्ण जयंती सभागार, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय
डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के नाट्य विभाग द्वारा मंचित नाटक 'महारथी' किसी एक शाम की प्रस्तुति नहीं, बल्कि नाट्य कला, लोक संवेदना और सामाजिक चेतना का जीवंत संगम था। डॉ. नीरज उपाध्याय के निर्देशन में यह नाटक न सिर्फ मंच पर सजीव हुआ, बल्कि दर्शकों के अंतर्मन में भी अपनी अमिट छाप छोड़ गया।
'महारथी' महाभारत के महानायक कर्ण की गाथा को केंद्र में रखकर आधुनिक समाज की नैतिक, सामाजिक और वैचारिक उलझनों को बेबाकी से उजागर करता है। यह प्रस्तुति महाभारत को एक ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवंत सामाजिक दस्तावेज के रूप में प्रस्तुत करती है—जहां मिथक, यथार्थ की आंखों में आंखें डालता है।
विश्वजीत डेहरिया द्वारा निभाया गया कर्ण का पात्र नाटक की आत्मा था। उनके अभिनय में संवेदनशीलता, आंतरिक द्वंद्व और मर्यादा का बोझ इतनी सहजता से उभरा कि दर्शक पात्र के साथ-साथ भावनात्मक यात्रा पर निकल पड़े। वहीं देववृष अहिरवार ने कृष्ण के चरित्र में दर्शन, राजनीति और रणनीति की त्रिवेणी को बखूबी मंच पर उतारा। दीपेंद्र सिंह लोधी (दुर्योधन), प्रिया गोस्वामी (कुंती), सिया चौबे (द्रौपदी) और अन्य छात्र कलाकारों ने भी नाटक में गहराई और गंभीरता का रंग घोला।
नाटक की सबसे बड़ी ताकत उसका संवाद है—न केवल पात्रों के बीच, बल्कि मंच और दर्शकों के बीच भी। शब्द, देह और मंच—तीनों की त्रैतीय एकता ने इसे एक कला के रूप में भी परिष्कृत और विचार के रूप में भी प्रासंगिक बना दिया। नाटक ने यह भी सिद्ध किया कि रंगमंच केवल अभिनय का अभ्यास नहीं, बल्कि समाज से जुड़ने का माध्यम है।
सांस्कृतिक परिषद के समन्वयक डॉ. राकेश सोनी का यह कथन बिल्कुल सटीक है कि "यह प्रस्तुति केवल पाठ्यक्रम अभ्यास नहीं, बल्कि समाज, व्यक्ति और मिथक के बीच एक सार्थक संवाद है।"
'महारथी' न केवल कर्ण को केंद्र में लाता है, बल्कि समाज में जाति, पहचान और मर्यादा जैसे विषयों पर एक समकालीन दृष्टि से पुनर्विचार की प्रेरणा देता है।
अंत में, 'महारथी' केवल एक नाटक नहीं, बल्कि एक विचार है—जो छात्र-कलाकारों की प्रतिबद्धता, नाट्य दृष्टि और सामाजिक सरोकारों का प्रमाण है। यह प्रस्तुति यह भी सिद्ध करती है कि सागर विश्वविद्यालय के रंगमंचीय परिदृश्य में एक नई चेतना का उदय हो चुका है—जहां मंच पर अभिनय नहीं, संवाद होता है, विचार होता है और परिवर्तन की शुरुआत होती है।
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