#sagar #centraluniversity #anthropology
Sagar Watch News/ डिजिटल युग ने पारंपरिक संस्कृति के लिए चुनौतियां पेश की हैं, लेकिन इसने इसे संरक्षित करने और दुनिया भर में फैलाने के अवसर भी प्रदान किए हैं। अगर डिजिटलीकरण से भारत पारम्परिक संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति और अंग्रेजी भाषा का दबदबा बढ़ा है तो इसी डिजिटलीकरण के जरिये सही रणनीति अपनाकर पारम्परिक संस्कृति को नयी ऊंचाइयों पर भी ले जाया जा सकता है।
ये विचार विशेष अतिथि व्याख्यान डॉ. सुबल दास (सहायक प्राध्यापक, मानवशास्त्र विभाग, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर) द्वारा डॉ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग द्वारा शुक्रवार को अभिमंच सभागार में 'भारत के मानव विज्ञान एवं लोक संस्कृति के शिखर' विषय पर विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने व्याख्यान के दौरान व्यक्त किये।
इसी सिलसिले में प्रो. अजीत जायसवाल (प्रोफेसर, मानवशास्त्र विभाग) ने भारतीय संस्कृति की विविधता और लोक परंपराओं की महत्ता पर विचार साझा करते हुए कहा, भारत की असली पहचान उसके लोगों की संस्कृति में निहित है, जिसमें उनके रीति-रिवाज, परंपराएं, कला, लोकगीत, नृत्य, और जीवन जीने का तरीका शामिल है। यह सिर्फ सरकारी इमारतों या बड़े शहरों से नहीं। लोक संस्कृति ही है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती है और हमारी राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करती है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. सोनिया कौशल एवं डॉ. रामेन्द्रनाथ कुंडू ने किया। डॉ. सोनिया कौशल ने भारत के प्रत्येक क्षेत्र की सांस्कृतिक विशिष्टताओं के महत्व को रेखांकित किया तथा बताया कि किस प्रकार क्षेत्रीय विविधता भारत की एकता में शक्ति का प्रतीक है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम में बीएससी द्वितीय सेमेस्टर के विद्यार्थियों ने गीत, नृत्य, कविता, गंगा आरती व अन्य प्रस्तुतियों के माध्यम से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु व पूर्वोत्तर भारत की लोक संस्कृति को जीवंत कर दिया।
Post A Comment:
0 comments so far,add yours