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Sagar Watch News/ भारत में मप्र के सागर में स्थित नौरादेही (वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व) देश-दुनिया के लिए पहला प्रयोग होने जा रहा है जहां चीता-टाइगर साथ रहेंगे। हाल ही में भारतीय वन्यजीव संस्थान (Indian Institute of Wildlife-WII) देहरादून ने चीते की बसाहट के लिए दो नए स्थान चिन्हित किए हैं। उनमें से एक स्थान मप्र के सागर स्थित टाइगर रिजर्व को शामिल किया गया है। सागर के अलावा दूसरा स्थान जबकि दूसरा स्थान गुजरात का बन्नी ग्रासलैंड रिजर्व है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान (Indian Institute of Wildlife-WII) भारत के चीता प्रोजेक्ट की नोडल एजेंसी भी है। माना जा रहा है कि अगले वर्ष तक यहां चीतों की विस्थापन हो जाएगी। अगर ऐसा होता है तो वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व देश का पहला ऐसा वन्यजीव क्षेत्र होगा। जहां बिग केट फेमिली (Big Cat Family) के तीन सदस्य एक साथ देखने मिलेंगे।
वर्तमान में रिजर्व में बाघ और तेंदुए की बसाहट है। चीतों के आने से इस परिवार की तीन प्रजातियां हो जाएंगी। गौरतलब है कि देश में चीतों की बसाहट के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान (Indian Institute of Wildlife-WII) ने देश में सबसे पहले सागर के इस टाइगर रिजर्व को चिन्हित किया था। वर्ष 2010 में यहां सर्वे किया गया था। जिसमें रिजर्व की तीन परिक्षेत्र मुहली, सिंहपुर और झापन को चीता की बसाहट के अनुकूल माना गया था।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण(एनटीसीए) के डीआईजी डॉ. वीबी माथुर और भारतीय वन्यजीव संस्थान (Indian Institute of Wildlife-WII) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी के साथ वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व की उक्त तीनों रेंज मुहली, झापन और सिंहपुर का दो दिन तक मैदानी मुआयना किया।
जानकारों के अनुसार यह तीनों रेंज चीता की बसाहट के लिए आदर्श स्थान हैं। यहां लंबे-लंबे मैदान हैं। जिनमें यह जीव दौड़-दौड़कर शिकार कर सकेगा। इन तीनों रेंज का क्षेत्रफल करीब ६०० वर्गकिमी है। जबकि रिजर्व का संपूर्ण क्षेत्रफल 2339 वर्गकिमी है।
नौरादेही टाइगर रिजर्व अब मुख्य रूप से बाघों का बसेरा बन चुका है। ऐसे में वन्य जीव विशेषज्ञों द्वारा अक्सर यह सवाल उठाया जाता रहा है कि टाइगर की बसाहट के बाद क्या यहां चीता को लाया जा सकता है? क्या वे यहां जीवित रह पाएंगे?
इसके जवाब में दूसरे वन्य जीव शास्त्रियों का कहना है कि यह संभव है। क्योंकि चीता, तेंदुए और बाघ के शिकार का तरीका और उनके भोज्य जीव-जंतु अलग-अलग होते हैं। बाघ जहां नीलगाय, भैंसा, हिरण प्रजाति के छोटे-बड़े जानवर का शिकार करता है। वहीं तेंदुए मध्यम श्रेणी के जानवर जैसे जंगली सुअर, हिरण, भैंसा के बच्चों का शिकार करता है।
जबकि चीता छोटे और मझौले आकार के हिरण जैसे चीतल, काला हिरण और खरगोश सरीखे जानवरों का शिकार करता है। अब रही इन तीनों जानवरों के आमने-सामने आने की बात तो चीता, सदैव बाघ व तेंदुए से दूरी बनाए रखता है। यह ठीक उसी तरह से संभव है, जिस तरह से बाघ के साथ तेंदुए भी जीवनयापन कर लेते हैं।
गाँव का विस्थापन आवश्यक
चीतों की बसाहट देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है। ऐसे में इन जीवों की बसाहट से ज्यादा आवश्यक उनकी सुरक्षा व संरक्षण होगा। इस लिहाज से वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में एक कमी यहां कई गांवों का विस्थापन शेष रह जाना है। इनमें सबसे बड़ा गांव मुहली है। जहां की आबादी करीब 1500 लोग हैं। इसके अलावा बाकी दो रेंज झापन और सिंहपुर में भी कुछ गांव हैं। जहां से लोगों को विस्थापित करने के लिए शासन को करीब 200 करोड़ रुपए व्यय करना होंगे।
मप्र से ही लुप्त हुआ था चीता, तीन और देशों से आएंगे आजादी के पहले तक भारत में चीतों की बसाहट मप्र से दिल्ली होते हुए पंजाब तक रही है। लगातार शिकार के चलते यह जानवर आखिर में मप्र में सिमट गया लेकिन यहां भी ज्यादा समय तक नहीं बच पाया।
आजादी के चंद वर्ष बाद सन् 1952 में अविभाजित मप्र के आदिवासी क्षेत्र कोरिया के राजा ने आखिरी चीता भी मार दिया। इसके बाद करीब 75 साल बाद देश में चीता की वापसी हुई। एक जानकारी के अनुसार चीता के संरक्षण के लिए काम कर रहे दक्षिण अफ्रीका के पापुलेशन इनीशिएटि व चीता मेटा पापुलेशन प्रोजेक्ट के माध्यम से नामीबिया, बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका से कुछ और चीते भारत लाए जाएंगे।
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