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Sagar Watch News/ पश्चिमी शिक्षा प्रणाली ने भारतीय मूल्यों को पीछे छोड़ दिया है, जबकि भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण में अग्रणी रही है। यह विचार मध्य प्रदेश शासन के राज्यमंत्री धर्मेंद्र भाव सिंह लोधी ने डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के अभिमंच सभागार में धर्मपाल स्मृति द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्या अतिथि के तौर पर अपने उद्बोधन के दौरान व्यक्त किये ।
उन्होंने अनेक ऐतिहासिक और पौराणिक उदाहरणों के माध्यम से बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा ने पृथ्वी की गोलाई, गुरुत्वाकर्षण और जीवन विज्ञान जैसे विषयों पर हजारों वर्ष पहले ही गहन अध्ययन किया था. उन्होंने संस्कृत भाषा को सभी भाषाओं की जननी बताते हुए युवाओं से भारतीयता पर गर्व करने की बात कही।
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि मुख्य चुनाव आयुक्त मनोज श्रीवास्तव, सागर स्कूल शिक्षा संयुक्त संचालक डॉ. मनीष वर्मा, धर्मपाल शोधपीठ के निदेशक संतोष वर्मा एवं शैक्षिक अध्ययनशाला के अधिष्ठाता प्रो. अनिल कुमार जैन विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए ।
कार्यक्रम की प्रस्तावना में भारतीय इतिहासकार और गांधीवादी विचारक धर्मपाल जी के जीवन और चिंतन पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। बताया गया कि धर्मपाल जी आधुनिक शिक्षा व्यवस्था से असंतुष्ट थे और मानते थे कि यह भारतीय आत्मा से अलग करती है । उनका मानना था कि भारत का वास्तविक उत्थान तभी संभव है जब हम यूरोपीय बौद्धिक प्रभावों से मुक्त होकर अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ें।
कुलपति ने अपने उद्बोधन में भारतीय संस्कृति, मूल्य आधारित शिक्षा और युवाओं के समग्र विकास की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आधुनिकता के प्रभाव में समाज अपनी जड़ों से दूर हो गया है, इसलिए युवाओं में योग, आयुर्वेद, पारिवारिक संस्कार और राष्ट्र सेवा की भावना जागृत करना जरूरी है। नई शिक्षा नीति को चरित्र निर्माण और कौशल उन्मुख बताया। उन्होंने गीता, रामायण जैसे ग्रंथों को शिक्षा में शामिल करने की बात कही।
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