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Sagar Watch News/ बाबा साहब ने ऐसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आन्दोलन चलाया जो सती प्रथा, अस्पृश्यता, बाल विवाह जैसी अमानवीय प्रथाएं संस्कृति, सामाजिक और पारंपरिक प्रथाओं के नाम की जा रही रहीं थीं। यह सामाजिक व्यवस्था जो मानवीय गरिमा के विरुद्ध थी। उसके उन्मूलन के लिए आजीवन प्रयास किया।
ये विचार भारत सरकार के संचार मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. दिलीप सिंह ने डॉ. हरीसिंह विश्वविद्यालय सागर में डॉ. भीमराव अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर डॉ. आंबेडकर चेयर के तत्त्वावधान में मुख्य अतिथि के तौर पर अपने विशेष व्याख्यान में व्यक्त किये।
इसी सिलसिले में उन्होंने कहा कि बाबा साहब सामाजिक बदलाव चाहते थे। उनका मानना था कि जाति की समस्या मानसिक समस्या है जिसे जन्म से जोड़कर देखा जाने लगा। वे वैचारिक स्वतंत्रता, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, वैयाक्तिक स्वतंत्रता, नागरिक अधिकार, मानवीय गरिमा के पक्षधर थे। पूरे विश्व में उन्होंने इसके लिए लड़ाई लड़ी।
उन्होंने इस सम्बन्ध में गांधी, अम्बेडकर और सावरकार के विचारों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर चातुर्वर्ण व्यवस्था पर प्रहार करना चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि मानवीय गरिमा को बनाए और बचाए रखने के लिए वर्ण व्यवस्था का समाप्त होना आवश्यक है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये प्रभारी कुलपति प्रो. वाय.एस. ठाकुर ने कहा कि दुनिया के कई विकसित देशों में सरनेम की उपयोग कम किया जाता है इसलिए ऐसे देशों में जातिवाद की समस्या कम पाई जाती है। जाति की पहचान अज्ञानता के कारण है। यदि मनुष्य और समाज विकसित एवं ज्ञान आधारित होगा तो वह अपनी पहचान को अपनी प्रतिभा, कर्म एवं व्यक्तित्व से निर्मित करेगा। शैक्षिक उन्नयन से ही जातिविहीन समाज की संकल्पना संभव है।
प्रभारी कुलसचिव डॉ. सत्यप्रकाश उपाध्याय ने कहा कि डॉ. बी. आर अम्बेडकर ने समग्र दृष्टि से काम किया जिसके कारण उनके विचार एवं कार्य केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक हैं। उनके कार्यों को पूरी दुनिया में महत्त्व दिया जाता है। प्रो. कालीनाथ झा एवं डॉ. देवेन्द्र कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
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