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बोलियां भाषा को समृद्ध करती हैं। बुंदेली बचेगी तो हिंदी भी सशक्त होगी। यह विचार महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, छतरपुर से आये मुख्य अतिथि  डॉ. बहादुर सिंह परमार ने लेखिका एवं कवयित्री डॉ. (सुश्री) शरद सिंह के बुंदेली ग़ज़ल संग्रह "सांची कै रए सुनो, रामधई" के दीपक सभागार सिविल लाइन में सम्पन्न हुए लोकार्पण कार्यक्रम में अपने उद्बोधन के दौरान व्यक्त किये।यह कार्यक्रम  श्यामलम् संस्था द्वारा आयोजित किया गया 

इसी सिलसिले में उन्होंने कहा गजल संग्रह की कवियत्री की प्रशंसा में करते हुए कहा कि "इस दिशा में शरद सिंह का बुंदेली ग़ज़लों में समसामयिकता और नवीनता है। उनकी ग़ज़लें जितना तीखा कटाक्ष करती हैं, उतनी ही संस्कृति के संरक्षण के पक्ष में खड़ी दिखाई देती हैं। वे हिंदी के साथ बुंदेली में भी सक्रियता से लिख रही हैं।"

कार्यक्रम के अध्यक्ष 'गीत ऋषि' डॉ. श्याम मनोहर सीरोठिया ने कहा कि  डॉ शरद सिंह की गजलें सामाजिक विसंगतियों के विरुद्ध आम आदमी की पीड़ा और आक्रोश को स्वर देतीं हैं।

इस गजल संग्रह ने डॉ शरद जी को देश के बुंदेली रचनाकारों की अग्रिम पंक्ति में स्थापित कर दिया है। छतरपुर से पधारीं साहित्यकार विशिष्ट अतिथि सुश्री आभा श्रीवास्तव ने भी शरद सिंह के बुंदेली ग़ज़ल संग्रह पर अपने विचार व्यक्त करते हुए इसे बुंदेली साहित्य में वर्तमान समस्याओं की गहरी प्रस्तुति बताया।

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कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के पूजन अर्चन व कवि पूरन सिंह राजपूत द्वारा प्रस्तुत सस्वर सरस्वती वंदना के साथ हुई। आयोजक संस्था श्यामलम् अध्यक्ष उमाकांत मिश्र ने बुन्देली भाषा में स्वागत उद्बोधन दिया। आर के तिवारी, हरि शुक्ला, डॉ चंचला दवे द्वारा अतिथि स्वागत किया।  
आयोजक संस्था श्यामलम् द्वारा "सांची के रए सुनो, रामधई!" बुंदेली ग़ज़ल संग्रह की रचनाकार डॉ (सुश्री) शरद सिंह का सम्मान शॉल श्रीफल व अभिनंदन पत्र प्रदान कर किया गया।  डॉ सुश्री शरद सिंह के जीवन परिचय का वाचन हरि सिंह ठाकुर ने एवं अभिनंदन पत्र का वाचन कवि लेखक मुकेश तिवारी द्वारा किया गया।

लोकगीत गायक, कवि देवीसिंह राजपूत ने शरद सिंह की दो बुंदेली ग़ज़लों का गायन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अंजना चतुर्वेदी तिवारी ने  आभार व्यक्त कवि नलिन जैन ने किया।

इस अवसर पर कर्नल पंकज सिंह, शुकदेव प्रसाद तिवारी,एल एन चौरसिया, हरगोविंद विश्व, शिव रतन यादव, गजाधर सागर, राजेंद्र दुबे कलाकार,वीनू राणा,डॉ विनोद तिवारी,प्रदीप पांडेय, अरुण सिंघई,लीना घोष,अलका अग्रवाल, संतोष रोहित,पंकज शर्मा, डॉ शशिकुमार सिंह,डी के सिंह,डॉ नन्होरिया, डॉ मनीष झा,डॉ. लक्ष्मी पांडेय, डॉ वंदना गुप्ता, डॉ नीलिमा पिंपलापुरे, डॉ आराधना झा, संध्या सरवटे, सुप्रिया नवाथे, स्वाति हल्वे,उषा बर्मन, डॉ नम्रता फुसकेले, रेशु जैन,अर्चना प्यासी, देवकी नायक, शशि दीक्षित,अणिमा पाठक, सुश्री सुमन,ज्योति झुडेले, संतोष पाठक,पी आर मलैया,टी आर त्रिपाठी, सतीश पांडेय, डॉ नौनिहाल गौतम, आशीष ज्योतिषी, डॉ ऋषभ भारद्वाज, अंबिका यादव,पी एन मिश्रा, डॉ नवनीत धगट,प्रभात कटारे,पवन रजक, पुष्पेंद्र दुबे,अमित चौबे,संतोष श्रीवास्तव विद्यार्थी, अशोक तिवारी अलख,पेट्रिस फुसकेले, वीरेंद्र प्रधान, रमेश दुबे, डॉ नरेन्द्र प्यासी, एम डी त्रिपाठी सहित बड़ी संख्या में विद्वतजन उपस्थित थे।

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