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Sagar Watch News/ जब कोई भाषा मरती है तो वह अकेली नहीं मरती उसके साथ संस्कृति व अस्मिता भी मरती है। 20वीं शताब्दी में विचारकों की प्रधानता थी तो 21वीं सदी में तकनीक की प्रमुखता है तो मानव जाति के लिए संकट व विकास दोनो का संदेश देती है।
यह विचार पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर निदेशक सप्रे संग्रहालय भोपाल ने शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सागर में भारतीय ज्ञान परम्परा के अंतर्गत आर्ष भाषा एवं भाषा सत्याग्रह विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद कार्यक्रम विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने संबोधन के दौरान व्यक्त किये।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शैलेन्द्र जैन विधायक ने कहा कि वेद और पुराण का मूल यह है कि हम अकेले भारत का कल्याण नहीं चाहते हैं ये ग्रंथ विश्व कल्याण की भावना के प्रणेता है। युवाओं के ज्ञान विज्ञान की क्षमता से हम किसी भी देश के आध्यात्मिक व भौतिक विकास की स्थिति पता कर सकते है।
स्वागत भाषण देते हुए महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. सरोज गुप्ता ने आर्ष भारत तथा भाषा सत्याग्रह की वर्तमान समय में आवश्यकता के विषय में चर्चा की तथा राष्टकवि मैथलीशरण गुप्ता की कविता का वाचन किया।
आचार्य पं प्रभुदयाल मिश्र अध्यक्ष महर्षि अगस्त संस्थानम भोपाल ने कहा कि हिन्दी भाषा जनपदीय भाषाओं का समुच्चय है। हमे अपनी भाषा का सम्मान तथा अन्य आभाषाओं पर अभिमान होना चाहिए। अदालत की भाषा अंग्रेजी है जबकी जिन का मुकदमा अदालत में चलता है वह हिन्दी भाषी होते है। महंत नरहरिदास, वृन्दावन बाग मठ ने कहा कि वृह्म रूपी संतान मानव के मानवीयता की शिक्षा देने के लिए होती है।
पं. श्रीराम तिवारी ने आर्ष भारत एवं भाषा सत्याग्रह पर बोलते हुये कहा भारत का मूल आर्ष भारत में विद्धमान है और हमे पुनः भारतीय संस्कृति को वैदिक बनाना होगा। डॉ. पंकज तिवारी ने डॉ. हरीसिंह गौर को भारत रत्न देने के संबंध में अपने तर्कपूर्ण बाते बताते हुए कहा कि डॉ. गौर ने देवदासी प्रथा समाप्ति तथा महिलाओं को बकालत करने का अधिकार के साथ सागर को देश की राजधारी बनाने का प्रस्ताव दिया था।
वरिष्ट साहित्यकार एवं कवि अशोक मिजाज ने अपनी कविता से युवाओं के साथ सभागार में उत्साह भर दिया। उनकी कविता किसी भी हाल में मेरे बराबर हो नहीं सकती नदी कितना भी इतराले वह समुंदर हो नहीं सकती।
राजेश्वर वशिष्ट गुरूग्राम हरियाण ने राम सीता की कविता का पाठ किया। डॉ राजेश शुक्ला आयुर्वेदिक आचार्य ने भारतीय संस्कृति के आद्धात्मिक पक्ष पर विस्तार से चर्चा की।
कार्यक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ के अंतर्गत आयोजित जिले की विभिन्न महाविद्यालयों से आये प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र दिये गये। कार्यक्रम में महाविद्यालय के शिक्षक सहित विद्यार्थी उपस्थित थे। जिसमें महाविद्यालय की 50 छात्र-छात्राओं ने ऋषि एवं ऋषिकाओं की वेष-वूषा धारण कर आर्ष भारत की परिकल्पना को जीवन्त किया।
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