#Abaar Mata | #Sagar | #Aalha-udal | #Bundelkhand|
Sagar Watch News/ बुंदेलखंड का प्रसिद्ध क्षेत्र महावीरों आल्हा -ऊदल के वीरता भरे किस्सों के लिए तो जाना ही जाता है । लेकिन बुंदेलखंड अंचल के लोकप्रिय अबार माता तीर्थक्षेत्र से भी उनका गहरा नाता बताया जाता है। श्रुति के अनुसार बुंदेलखंड आल्हा ऊदल जैसे वीरों की मनोकामना अबार माता ने पूर्ण की थी और आल्हा-ऊदल ने है अबार माता का दरबार मंदिर का निर्माण कराया था । कहा तो यह भी जाता जब इस अंचल में डकैतों का बोलबाला था तब वे भी इस मंदिर में पूजा करने आते थे ।
12वीं सदी में अस्तित्व में आया ये मंदिर
बुंदेलखंड और वीरों की सदी यानी 12 वीं सदी में पृथ्वीराज चौहान को चौकाने वाले आल्हा ऊदल की कहानी इस मंदिर की स्थापना से जुड़ी हुई है। यहां चैत्र नवरात्र में माता की कृपा पाने लोगों का तांता लगता है।
बुंदेलखंड के वीर आल्हा-ऊदल ने इस मंदिर को बनवाया था। करीब साढ़े 800 साल पहले वे महोबा से माधौगढ़ जा रहे थे। पहुंचने में देर यानि बुंदेली भाषा में अबेर हो जाने पर उन्होंने यहीं बियाबान जंगल में ही अपना डेरा डाल दिया।
रात में जब उन्होंने अपनी आराध्य देवी का आह्वान किया तो मां ने उन्हें दर्शन देकर इसी स्थान पर मंदिर बनवाने की प्रेरणा दी। माता की प्रेरणा से उन्होंने यहां चट्टान पर मां की मढ़िया बनावा कर प्रतिमा स्थापित कराई।
तभी से यहां मां को अबार माता के नाम जाना जाने लगा। चट्टान के पास गर्भगृह में विराजी अबार माता जगत जननी जगदंबा का ही रूप हैें। बाद में जब यहां गांव बसा तो लोगों ने चट्टान के पास मंदिर बनवाकर उसमें सिद्ध प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करा दी।
किवदंती है कि इस मंदिर में मौजूद एक विशालकाय चट्टान है, जिसका जुड़ाव भगवान शिव से माना जाता है। ऐसी धारणा है यह चट्टान हर महाशिवरात्रि को एक तिल के बराबर विस्तार पाती है, जो वर्तमान में करीब 70 फिट की हो चुकी है। इससे लोगों की आस्था जुड़ी है।
डकैतों की माता का मंदिर के रहस्य
अबार माता को डकैतों की माता का मंदिर भी कहा जाता है। बुंदेलखंड के दस्यु युग में दुर्दात और खूंखार डाकू इसी मंदिर में माता के दरबार में हाजिरी लगाते थे। जिनमें पूजा बब्बा, मूरत सिंह, देवी सिंह जैसे डकैतों से लेकर ग्वालियर-झांसी के डकैत भी यहां आते थे और माता की आराधना कर मनौती का घंटा चढ़ाते थे।
तीन जिलों की सीमाओं से लगा घने जंगली पहाड़ों में बसा यह मंदिर उनके लिए वाकई एक सुरक्षित स्थान था। एक जिले में डकैती डालकर दूसरे प्रदेश या अन्य जिले में चले जाना यहां से आसान था, क्योंकि उत्तर प्रदेश की सीमा भी यहां से लगी हुई है। वहीं चट्टान से बने इस मंदिर की संरचना भी बहुत रोचक और अनोखी है। यहां कोई छिपा हो तो उसे ढूंढ़ना मुश्किल होगा।
पत्थरों और बड़ी-बड़ी भीमकाय चट्टानों से बने इस मंदिर की गहराइयों में कई रहस्य छिपे हैं। ये चट्टानें बड़ी-बड़ी मशीनों से भी हिलाई नहीं जा सकतीं। यहां एक पिलरनुमा चट्टान ऐसी है, जो अपने आप बढ़ती जा रही है। कुछ साल पहले इस चट्टान की चोटी पर माता की छोटी-सी मढ़िया बनाकर मूर्ति स्थापित की गई, जिसके बाद इसका बढ़ना रुक गया। अपितु यह बढ़ते- बढ़ते यह 70 फीट की हो गई है।
नवरात्रि में हर दिन आते है 50 हजार से 1 लाख लोग
अबार माता मंदिर में आम दिनों में रोजाना 2 हजार लोग माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर पहुंचने वालो में छतरपुर जिले के अलावा टीकमगढ़, सागर, दमोह के श्रद्धालु भी आते हैं। छतरपुर जिला मुख्यालय से 105 और बड़ामलहरा विकासखंड मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर रामटौरिया के पास अबार माता का मंदिर स्थिति है, जहां जाने के लिए बस,टैक्सी सुविधा उपलब्ध हैं।
पंचमी व अष्टमी को होता है विशेष श्रंगार
नवरात्रि में अबार माता का हर दिन श्रंगार होता है। पंचमी और अष्टमी को विशेष श्रंगार किया जाता है। वहीं वैसाख माह की नवरात्रि में दस दिन तक विशेष मेला लगता है। हालांकि शारदीय नवरात्रि पर भी मेले जैसा माहौल रहता है, लेकिन वैसाख माह का मेला प्रसिद्ध है।
सागर से कैसे पहुंचे अबार माता धाम तक
छतरपुर जिले के बड़ामलहरा अनुभाग से महज 40 किमी दूरी पर स्थित अबार माता मेला में बहुत भीड़ देखने को मिलती है। धाम तक पहुंचने के लिए सागर छतरपुर रोड से शाहगढ़ विकासखंड के रामटोरिया गांव मे बस एवं निजी वाहन से आसानी से पहुंच सकते हैं।
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