Education | UTD

Sagar Watch news

Sagar Watch News/
भारतीय ज्ञान प्रणाली में शिक्षक की भूमिका वैदिक काल से महत्वपूर्ण रही है। शिक्षक केवल पाठ्यक्रम पढ़ाने तक सीमित नहीं, बल्कि छात्रों को भारतीयता और राष्ट्र सेवा के प्रति जागरूक करता है। वैदिक काल से ज्ञान का आदान-प्रदान गुरु के माध्यम से होता रहा है, और विद्यादान को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। 'द ब्यूटीफुल ट्री' का उल्लेख करते हुए बताया गया कि भारत ने शिक्षक धर्म और कर्तव्य की अवधारणा को विश्व में स्थापित किया है। आज, विश्व के विभिन्न हिस्सों में भारतीय मूल के शिक्षक अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। 

यह विचार कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय शांतिलाल जानी ने डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर में शिक्षक दिवस पर्व 5 सितंबर के अवसर पर विश्वविद्यालय के अभिमंच सभागार में ‘अध्यापक: धर्म, कर्म एवं मर्म’ विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान में अपने उद्बोधन के दौरान व्यक्त किये । 

इसी सिलसिले में कुलगुरु प्रो. नीलिमा गुप्ता ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि पहले शिक्षक की पहचान चाक और डस्टर से होती थी, लेकिन अब वे लैपटॉप और तकनीकी उपकरणों से युक्त  हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने शिक्षा को नया स्वरूप दिया है, जिसमें कौशल  और मूल्याधारित शिक्षा  शामिल हैं। 

कोरोना काल में शिक्षकों ने अपनी भूमिका निभाई और अब बहु कौशल युक्त और बहु आयामी  शिक्षकों की आवश्यकता है। तकनीक मानव संवेदना को नहीं समझ सकती, इसलिए शिक्षक-छात्र संबंध अनमोल हैं। शिक्षकों को 2047 तक नए भारत के निर्माण में अपनी भूमिका निभानी होगी और उनकी गुणवत्ता एवं संख्या में वृद्धि जरूरी है।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय की सेवा से निवृत्त प्राध्यापकों प्रो. गिरीश मोहन दुबे , डॉ. ललित मोहन , प्रो. संजय कुमार जैन , तथा प्रो. एस. एच. आदिल को शाल, श्रीफल एवं अभिनंदन-पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया.शिक्षा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. रजनीश ने अभिनन्दन पत्र का वाचन किया. प्रो. अनिल कुमार जैन ने शिक्षा एवं शिक्षक पर केन्द्रित स्वरचित कविता का पाठ किया. 

 कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे.


Share To:

Sagar Watch

Post A Comment:

0 comments so far,add yours