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SAGAR WATCH/ आखिरकार कांग्रेस पार्टी ने मप्र में सबसे पहले अपने सारे पत्ते खोल दिए हैं। उसने प्रदेश की सभी 230 सीटों के लिए अपने अधिकृत उम्मीदवारों की नामों की सूची जारी कर दी है। हालाँकि प्रत्याशियों की सूची जारी करने में भाजपा ने बाजी मारी है। वह सबसे पहले ही 39 प्रत्याशियों की सूची कर सभी को चौंका चुकी है। लेकिन शेष बची सीटों के लिए उसके प्रत्याशियों के नामों के सामने आने का लोगों को अभी भी इन्तजार है।
बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी भी अपने प्रत्याशियों के नामों की सूची घोषित करते जा रहे हैं लेकिन आम आदमी पार्टी इस मोर्चे पर फिसड्डी साबित हो रही है। 21 अक्टूबर से नामंकन पत्र भरे जाने का सिलसिला शुरू हो रहा है उम्मीद की जा रही है तब तक सभी पार्टियाँ शेष बचीं सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर ही देंगीं ।
प्रत्याशियों के नामों को चयन के लेकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बहुत से घटक जिम्मेदार रहते हैं पर कुछ घटकों पर चर्चाएँ खूब होतीं हैं। मौजूदा दौर में प्रत्याशियों के चयन के आधार के मामले में उनके जीतने की संभावनाओं को अन्य सभी वजहों से ज्यादा तरजीह दिए जाने की चर्चा आम बनती जा रही है।
मिसाल के तौर पर भाजपा द्वारा मप्र में पार्टी के सात सांसदों और तीन केन्द्रीय मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारने के फैसले को लेकर चुनावी समीक्षकों के बीच खूब कयास लगाये जा रहे हैं। एक पक्ष ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि विधानसभा चुनाव इन सांसदों की अग्नि परीक्षा है अगर ये चुनाव नहीं जीत पाए तो चुनावी राजनीति से इनकी विदाई तय है। वहीं दुसरे धड़े का यह मानना रहा कि सांसदों और मंत्रियों को प्रदेश के विधानसभा चुनावों में उतार कर केंद्रीय नेतृत्व ने एक तरह से प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदार बढ़ा दिए हैं।
दलों के स्थानीय समीकरण, प्रदेश स्तर पर हर पार्टी के अन्दर ही जाति, दावेदारों के "गॉड-फादर" की पार्टी में हैसियत व दबदबा, केंद्रीय नेतृत्व के नीतिगत फैसले और पसंद-नापसंद जैसी बातें टिकिट वितरण के पहले काफी अहमियत रखतीं हैं।
हालाँकि ये सभी बातें पार्टी के बाहर के विश्लेषकों की पहुँच से अमूमन बहुत हद तक बाहर होतीं हैं इसीलिये जब प्रत्याशियों के नामों के अंतिम सूची जारी होती है तो बहुत से नाम लोगों को चौंकाने वाले लगने लगते हैं और उनके चयन को लेकर नयी अटकलों लगाने और समीकरण बताने का दौर शुरू हो जाता है।
वैसे तो मप्र में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही तय माना जा रहा है । फिर भी कुछ सीटों पर उनकी हार जीत को तीसरे पायेदान पर रहने वालीं पार्टियों - बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी प्रभावित कर देते हैं । हालाँकि इस मामले में कुछ निर्दलीय प्रत्याशी भी गुल खिला देते हैं।
बुंदेलखंड की कुछ सीटों पर इसी तरह के अनुमान लगाये जा रहे हैं। जैसे कि सागर जिले की आठ सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के सभी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा हो चुकी है । इसी के चलते यहाँ अटकलबाजी का दौर भी जोर पकड़ता जा रहा है। पिछले चुनावों में यहाँ की आठ में से दो सीटें कांग्रेस की झोली में आयें थी जबकि शेष छः सीटें भाजपा के खाते में आयीं थीं।
दोनों ही पार्टियों के द्वारा इन सीटों पर घोषित प्रत्याशियों को लेकर लोगों में नतीजों में बदलाव को लेकर अभी कोई बहुत उत्साह नजर नहीं आ रहा है। फिर भी भाजपा की आकांक्षी सीटें और कांग्रेस के खाते की सीटें, बंडा और देवरी को लेकर मिली जुली प्रतिक्रियां सामने आ रहीं हैं। अन्य क्षेत्रों के मुकाबले जनता में प्रत्याशियों को लेकर नाराजगी कम दिख रही है लेकिन भाजपा के बागी प्रत्याशी बंडा में और देवरी में पार्टी की अंतर्कलह व् गुटबाजी नतीजों को अनिश्चितता बनाये रखेगी।
खुरई, रहली,नरयावली और सागर को भाजपा का गढ़ माना जाता है। रहली पिछले आठ बार से और सागर और नरयावली पिछली तीन बार से भाजपा के ही खाते में बनी हुयी है। इन सीटों पर दोनों ही दलों के प्रत्याशियों के नामों की घोषणा हो चुकी है।
उनको लेकर किसी बड़े फेबदल अटकले फिलहाल नहीं लग रहीं हैं फिर भी सागर सीट पर वर्तमान विधायक की बहू निधि जैन के प्रमुख प्रतिद्वंदी दल कांग्रेस के टिकिट पर उतरने से मुकाबला के रोचक होने का अनुमान लगाया जाने लगा है।
रहली में कांग्रेस की और से युवा नेत्री को टिकिट दिए जाने से पार्टी के अन्दर ही मायूस हुए एक पक्ष द्वारा मुकाबला के रोमांच को कम करने वाला बताने लगा है। नरयावली में कांग्रेस द्वारा तीन बार से चुनाव हार रहे प्रत्याशी को ही चौथी बार फिर प्रत्याशी बनाने से इस क्षेत्र में लोगों किसी भी तरह की बदलाव के प्रति आशान्वित नजर नहीं आ रहे हैं ।
सभी दलों के प्रत्याशियों के नामों की सूचियाँ जारी होने का सिलसिला थमने के बाद पार्टियों की हार-जीत पर चर्चा शुरू हो जाएगी। तब इस हार-जीत को प्रभावित करने वाले स्थानीय समीकरणों ,भितरघात और नफे -नुकसानों को लेकर अटकलों, षड्यंत्रों के चर्चे भी होंगे। अंतिम नतीजे चाहे जो भी रहें पर तब तक हर गली-कूचे व चौपालों पर सजने वाली कयासों की महफिलों में खूब रंग बरसेगा।
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