chhoti chhoti baaten
मप्र में विधान सभा चुनाव के करीब आते है सियासी दलों के अन्दर और बाहर उठा-पटक तेज होती जा रही है। सभी दल पूरी ताकत से चुनाव जीतने के गुणा-भाग में लग गए हैं। इस बार प्रदेश के दो मुख्य प्रतिद्वंदी दलों के अलावा आम आदमी पार्टी भी ख़म ठोक रही है। बहुजन समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी भी सक्रिय हैं पर इनके अन्दर अन्य दलों के सामान जोश नजर नहीं आ रहा है। हालांकि जानकारों की माने तो इस बार जनता भी "लप्पू-पप्पू " बनकर नहीं बैठी है।
सागर शहर में स्मार्ट सिटी के विकास कार्यों की गुणवत्ता को लेकर एकमत नहीं लगते हैं । संतोषी प्रवृत्ति के लोग कहते हैं काम चाहे जैसे हुआ हो कम से कम शहर के शक्ल तो बदली। लेन-देन खान-पान की बातें अब ताजगी का अहसास नहीं दिला पा रहीं हैं। वहीं गुणवत्ता के आधार पर स्मार्ट सिटी को कोसने वाले लोग उसे हर साल कोई न कोई अवार्ड मिलने से घनचक्कर बने हुए हैं । उनके दिमाग के पल्ले नहीं पड़ रहा है कि लाख बुराई करने और दिखाने के बाद भी ये हर बार पुरस्कारों की प्रतियोगिताएं में अव्वल कैसे आ जाते हैं। ये वाला स्मार्ट वर्क इनकी समझ में ही नहीं आ रहा है ।
मप्र में शहर और कस्बों के बीच अघोषित से होड़ चल रही है । इस होड़ को वो ही लोग हवा दे रहे हैं जो कस्बों से जीत कर आये हैं। हालांकि वो नुमाइंदे तो प्रदेश के हैं । प्रदेश भर के विकास के जिम्मेदारी इनके कन्धों पर है लेकिन उन पर सिर्फ अपने क्षेत्रों के विकास की धुन सवार है। जिन शहरों के अंतर्गत इनके क्षेत्र आते हैं वे शहर तो बेचारे बन कर रह गए हैं। महानुभावों के कस्बों में तो विकास की गंगा हिलोरें भरते नजर आ रही है। अख़बारों में हर रोज करोड़ों -अरबों के विकास कार्यों की शुरू होने और पूरे होने के बखान छप रहे हैं और वहीँ शहर विकास कार्यों की इन फेहरिस्त में खुद को हाशिये पर देख कर मायूस हो रहे हैं।
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