Cooperative Banks, Appointment


Sagar Watch सागर वॉच

भोपाल।
बुंदेलखंड में इन दिनों सियासत जोरों पर है। ताजा मामला छतरपुर का है, जहां केंद्रीय सहकारी बैंक अध्यक्ष बनाए जाने के लिए भाजपा के ही दो गुटों के बीच काफी खींचा-तानी हो रही है। 

बैंक के अध्यक्ष के पद पर एक पूर्व अध्यक्ष को ही बैठाने की कवायद भाजपा संगठन के मुखिया ही कर रहे हैं । मजेदार बात यह ही इस काम में उन्हें सरकार के एक ऐसे मंत्री ही मदद कर रहे हैं जिन्हें उनका विरोधी माना जाता है। 

दरअसल बताया जाता है कि मुखिया अपने कार्यकाल के खत्म होने के बाद भी अंचल में अपना दबदबा बनाये रखने की चाहत में इस खेल को हवा दे रहे हैं। जबकि मंत्री जी किसी अहसान का उतारा करने की कोशिश में इस खेल में मोहरा बने हुए हैं।
 
सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि प्रदेश के 45 जिलों में केंद्रीय बैंक के अध्यक्षों की नियुक्ति होना है, फिर केवल छतरपुर की नियुक्ति के लिए ही पार्टी के दिग्गज इतनी रुचि क्यों ले रहे हैं वह भी आपसी दुश्मनी भुला कर।

स्थानीय जानकारों की माने तो इस नियुक्ति से छतरपुर भाजपा में विस्फोट हो सकता है। चर्चा है  कि पूर्व विधायक विजय बहादुर सिंह बुंदेला, जयराम चतुर्वेदी, हरिओम अिग्नहोत्री, नन्नू चौबे सहित आधा दर्जन सहकारिता नेता उम्मीद लगाये बैठे हैं कि सरकार उन्हें भी मौका देगी। 

इन नेताओं ने एक गुप्त बैठक कर आलाकमान को  विरोध करने के स्पष्ट संकेत दिए हैं। सूत्रों की मानें तो छतरपुर केंद्रीय सहकारी बैंक की जिस पूर्व अध्यक्ष को दोबारा ताजपोशी की कवायद में लगे भाजपा के दिग्गजों के लम्बे समय से एक दूसरे को बेजा लाभ पहुंचाने का लम्बा नाता रहा  है। 

अध्यक्ष पद पर अधिकार जताने की इस जोर आजमाइश की चर्चाओं के साथ ही बैंक के एक पूर्व अध्यक्ष के कार्यकाल में  बैंक में दो दर्जन से अधिक सहायक प्रबंधकों और सेल्समैनों  की नियुक्ति की की गयीं थी। तभी से इन नियुक्तियों में भारी लेन-देन होने की चर्चाएँ भी गरम बनीं हुईं है। जानकार इस दौर की कथित सफल लेनदेन को भी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को लेकर चल रही खींच-तान की वजहों में से एक वजह मानने से इनकार नहीं कर रहे हैं ।

प्रदेश में एक साथ नियुक्तियां  क्यों नहीं ?

भोपाल में भी प्रदेश बार के रिक्त पड़े केंद्रीय सहकारी बैंकों के अध्यक्ष पद पर नियुक्तियों को लेकर यह बहस चल रही है कि अगर नए सिरे से  ही नियुक्तियां होना है तो इस प्रक्रिया में  केवल छतरपुर ही क्यों अपवाद बने? केवल यहाँ ही क्यों  किसी पूर्व अध्यक्ष की ही दोबारा ताजपोशी करने की कोशिशें चल रहीं हैं?
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