सागर वॉच-बुंदेलखंड में यह पहली बार ऐसा हो रहा है जब राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का छिपा चेहरा राजनीतिक आकाओं के सबसे निचले कैडर की लड़ाई के रूप में सामने आ रहा है। सत्ताधारी राजनीतिक दल के खेमे में आयातित नेता अभी भी पुराने,समर्पित और अनुभवी कार्यकर्ताओं पर भारी पड़ते दिख रहे हैं।
हालांकि ऐसा लगता है कि यह परिदृश्य धीरे-धीरे पार्टी के दिग्गज क्षेत्रीय नेताओं के लिए भी असहनीय होता जा रहा है। न केवल आगामी विधानसभा चुनाव बल्कि शीर्ष नेतृत्व के आक्रामक और अबूझ तेवरों ने भी उन्हें और अधिक असहज बना दिया है। सियासी पंडित उत्सुकता से देख रहे हैं कि भाजपा में आने वाले समय में इस रणनीतिक अंदरूनी कलह और गुटबाजी के क्या परिणाम होंगे।
चर्चा तो यह भी है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के परिवार-वाद व भाई-भतीजा वाद को भी चलता करने के मंसूबों को देखते हुए भी अंचल के वर्षों से धूनी जमाये बैठे नेता भी अन्दर ही अन्दर सहमे हुए हैं।
इन कथित कद्दावर नेताओं ने सियासत की बिसात भी ऐसे बिछाए रखी जिससे पार्टी में दूसरी और तीसरी कतार का नेतृत्व ही पैदा न हो सके। प्राकृतिक नेतृत्व पैदा नहीं होने से आये खालीपन को भरने के लिए नाते-रिश्तेदारों की दावे-दारियों के जरिये भरने की कवायद करने में भी इनकी और से कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है।
केंद्रीय नेतृत्व द्वारा युवा और स्थानीय नेतृत्व को ही आगे बढाने के इरादों के चलते आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कई नए दावेदारों के नाम सामने आने लगे हैं। इसके चलते हो सकता है कि आने वाला समय में पार्टी का चेहरा पूरी तरह ही बदला नजर आ सकता है ।