#sagar #aacharan #journalism #hindiPatrakarita
फरवरी 1987 की बात है जब मैं दक्षिण भारत से प्रकाशित दैनिक आदर्श पत्र (बैंगलोर)में कार्य करता था। ज्वाइनिंग के 5 महीने बाद सागर कुछ दिन की छुट्टी पर आया था। सिविल लाइंस के मेरे पैतृक निवास अशोक वाटिका के बाहर एक फियट कार आकर रूकती है।
सामान्य कद काठी के ब्लैक चश्मा लगाए ,सफारी पहने एक शख्स कार से उतरते हैं,मिलते ही अपना परिचय देते हैं।मैं एएच कुरैशी हूं । हम सागर से दैनिक अखबार शुरू करना चाहते हैं। आपके दोस्तों ने ही आपके बारे में बताया है। आप कार्य करना चाहेंगे अखबार में ? मैंने जब उन्हें बताया दक्षिण में मुझे कुछ महीने हुए हैं.
मैं नवभारत टाइम्स मुंबई और दिल्ली के लिए कर्नाटक की चिट्ठी भी लिखता हूं। खुश हूं वहां,दो हजार वेतन है,आवास सुविधा भी मिली हुई है। मैं बैंगलोर में एक डेढ़ साल कम से कम रहना चाहता हूं। दक्षिण भारत को समझना चाहता हूं।
वे बोले अपने घर में आ जाओगे, बड़ा अखबार है आचरण, अब सागर से शुरू हो रहा है ,इसके संपादक बनो जल्दी, मेरी शुभकामनाएं हैं। कुछ ऐसा हुआ कि फिर बैंगलोर से कुछ अन्य कारणों से भी समाचार पत्र से हम कुछ साथियों ने एक साथ त्यागपत्र दिए। मुकेश कुमार, राज कौशिक, सतीश जोशी, अन्नू आनंद, ओपी गुप्ता चाणक्य आदि।
इस अखबार के संपादक वेद प्रताप वैदिक नियुक्त किए गए थे जो निजी कारणों से बंगलौर नहीं आ पाए । अखबार का प्रबंधन पक्ष कमजोर था। इस तरह कुछ वर्ष की फ्री लांसिंग के बाद मुझे सागर में, अपने ही शहर में फिर सम्मानजनक रूप से काम का मौका मिल गया था। जुलाई 1987 में मध्य प्रदेश सरकार में जनसंपर्क अधिकारी के पद पर चयन हो जाने के बाद मैंने पत्रकारिता को बाय-बाय कहा।
लेकिन उन सभी अखबारों के संपादकों ,मालिकों और सीनियर पत्रकारों से मेरे मधुर संबंध तब से कायम हैं। आचरण टीम के सुरेंद्र माथुर जी,बच्चन बिहारी जी और सबसे वरिष्ठ राम विद्रोही दादा सबसे हालचाल लेना, देना अभी भी होता है। इस साल जब मुझे कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण हुआ तो मेरे पुराने संपादकों में से सबसे ज्यादा फोन किसी के आए तो वे थे श्री ए एच कुरैशी जी।
अभी पांच-छह दिन पहले ही उनसे बात हुई थी और उन्होंने कहा कि मैं दिल्ली से लौटकर भोपाल इसी महीने आऊंगा। तब बैठकर गप शप करेंगे। आज सुबह अचानक समाचार मिला कि कुरैशी जी दिल का दौरा आ जाने से चल बसे । बरसों पुरानी स्मृतियां ताजी हो उठीं। मालिक और पत्रकार के रिश्ते आत्मीय संबंधों में भी बदल जाते हैं यह कुरैशी जी के साथ मेरे संबंधों के रूप में भी बात सामने आई ।
सागर आचरण शुरू हुआ तो सागर नगर की साहित्यिक, राजनीतिक,प्रशासनिक, सामाजिक और अकादमिक गतिविधियों में मानो जान आ गई थी। हम आधा आधा पेज का कवरेज देते थे। पहली बार साहित्यिक गोष्ठियों के बड़े बड़े फोटो भी छपे । भोपाल और इंदौर के अखबारों में जगह सीमित होती थी।
यही हाल जबलपुर से आने वाले अखबारों का था। सागर पिछड़ा ही दिखता था। सागर शहर की पत्रकारिता में एक मोड़ लाने में भी दैनिक आचरण की भूमिका रही। बाद में स्वामित्व बदल जाने के बाद भी अखबार निरंतर लोकप्रिय हुआ है। सागर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता डिग्री धारी और अन्य ऐसे लोगों को भी जो लेखन का शौक रखते हैं,उन्हें आचरण सागर ने मंच प्रदान किया।
साभार : अशोक मनवानी जी की Facebook Wall से
धन्यवाद राजेश भाई
जवाब देंहटाएं