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कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि नदियों, नालों , तालाबों से निकाली गई गाद में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पोषक तत्व मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं।

यदि यह प्रयोग बड़े पैमाने पर अपनाया जाए, तो रासायनिक खादों पर निर्भरता घटेगी और भूमि की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहेगी। गाद का खेतों में उपयोग एक पारंपरिक लेकिन प्रभावी उपाय है, जो पर्यावरण और खेती—दोनों के लिए लाभकारी है।

इसी सिलसिले में जिला कलेक्टर संदीप जी आर ने जिले के किसानों को खेतों की उपज और जमीन की उर्वरकता बढ़ाने के लिए गाद (सिल्ट) के उपयोग की सलाह दी है। खेतों की उर्वरता बढ़ाने के लिए नदियों, नालों , तालाबों से निकाली गई गाद का प्रयोग लाभकारी रहता है। कलेक्टर की यह पहल पर्यावरण के लिए लाभकारी होने के साथ-साथ किसानों के लिए भी फायदेमंद साबित होगी।

उल्लेखनीय है कि, कलेक्टर के निर्देश पर जिले के सभी तालाबों का जहां एक ओर सीमांकन किया जा रहा है, वहीं तालाब के पास मुनारें भी बनाई जा रहीं हैं, जिससे अतिक्रमण रोका जा सके और बेहतर प्रबंधन के साथ जल संरक्षण किया जा सके। 

कलेक्टर ने किसानों से अपील की है कि वह गाद का उपयोग करें। गाद में कुदरती तौर पर  पाए जाने वाले पोषक तत्व मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं। इसके अलावा, इस उपाय से सिंचाई की नालियों की सफाई भी हो जाती है, जिससे जल प्रवाह बेहतर होता है। बारिश के बाद खेतों की मिट्टी बह जाती है और उपज कम हो जाती है। लेकिन जब गाद का उपयोग खेतों में किया जाए तो मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होने के साथ फसल भी अच्छी आती है।

 
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