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लोकार्पण के पहले ही धराशायी होने वाली सरकारी विभागों द्वारा निर्मित सड़कें, भवन और पुल की ख़बरें पढ़कर आये दिन अचंभित होने वाली जनता समझ नहीं पा रही है की जैसे जैसे नईं तकनीक आ रहीं हैं निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और उम्र घटती नजर आ रही है। वह खुद से और सरकार से ही सवाल करती है कोई बताये खामी कहाँ है तकनीक में या तकनीक को अमल में लाने वालों में ?
इस सवाल का जवाब कब मिलेगा यह तो समय ही बताएगा।
फिलहाल नई तकनीक अपनाने को लेकर एक और कार्य शाला मप्र में हुई जिसमें प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री ने कार्यशाला के बहाने विभाग में कामकाज की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले इंजीनियरों को नई नई तकनीक से खुद को सुसज्जित बनाये रखने के नसीहत दी। उन्हें समझाया कि लोक निर्माण के लिए ऐसी तकनीक अपनाएं जो अच्छी , टिकाऊ और पर्यावरण का ख्याल रखने वाली हो।
Sagar Watch News/ लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह की अध्यक्षता में प्रदेश में एक साथ विभाग के संभाग स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन प्रशासनिक अकादमी भोपाल के साथ प्रदेश के आठ संभागीय मुख्यालयों में एक साथ किया गया।
इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य नवीनतम तकनीकों, उनके उपयोग और लाभों पर ध्यान केंद्रित करना था। इन कार्यक्रमों के माध्यम से उपस्थित अभियंताओं को आधुनिक निर्माण तकनीकों से अवगत कराया गया, जिससे सड़क निर्माण की गुणवत्ता, स्थायित्व और पर्यावरण-अनुकूलता को बढ़ाया जा सके।
संभाग के प्रशिक्षण का आयोजन में लगभग 128 प्रतिभागियों ने भाग लिया। राज्य स्तर से संजय मस्के मुख्य अभियंता एवं एस.एल. सूर्यवंशी मुख्य अभियंता के रूप में कार्यक्रम में शामिल हुए।
लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने कार्यशाला को विडियो कांफ्रेंसिंग (Video Conferencing) के माध्यम से संबोधित करते हुए कहा की आज के युग में, जब तकनीक तेजी से विकसित हो रही है, तो इंजीनियर्स के लिए स्वयं को अपडेट रखना आवश्यक हो गया है। नवाचार (Innovation),टिकाउ (Sustainability और कुशल समाधान (Smart Solutions) पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, और इसी उद्देश्य से यह कार्यशाला आयोजित की गई है।
मंत्री श्री सिंह ने कहा कि लोक निर्माण से लोक कल्याण तक का मार्ग इंजीनियर्स के माध्यम से ही संभव हो सकता है। उन्होंने कहा कि लोक निर्माण विभाग की नींव तभी रखी गई थी जब देश में इस विभाग का गठन हुआ और तब से लेकर आज तक, यह विभाग लगातार समाज के विकास में योगदान दे रहा है।
मंत्री श्री सिंह ने कहा कि इंजीनियर्स द्वारा निर्मित संरचनाएँ केवल आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होंगी। शिक्षा, स्वास्थ्य, तकनीक और आध्यात्मिक केंद्रों तक पहुँच इन्हीं संरचनाओं के माध्यम से होती है, जो लोक कल्याण की दिशा में अहम भूमिका निभाती हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का गठन लोक कल्याण के लिए हुआ है, और इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, इंजीनियर्स को अपने कर्तव्यों को समझते हुए कार्य करना चाहिए।
उन्होंने विकसित भारत के संकल्प का उल्लेख करते हुए कहा कि विकसित मध्यप्रदेश इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। लोक कल्याण की संरचनाओं को आदर्श रूप में स्थापित करना और समाज में इंजीनियर्स की विशिष्ट भूमिका को बनाए रखना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इंजीनियर्स को इस जिम्मेदारी को समझते हुए कार्य करना चाहिए ताकि उनके द्वारा किए गए कार्यों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाए।
मंत्री श्री सिंह ने कहा कि इंजीनियर्स को सजगता और जिम्मेदारी के साथ कार्य करना चाहिए, ताकि उनके द्वारा निर्मित संरचनाएँ गुणवत्ता और विशिष्टता का प्रतीक बनें। उन्होंने कहा कि विभाग आपके साथ खड़ा हैं, ताकि मध्यप्रदेश के लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर्स का नाम देशभर में सम्मान के साथ लिया जाए।
उन्होंने ने कहा कि यह कार्यशाला इंजीनियर्स की क्षमताओं को और अधिक सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो लोक निर्माण से लोक कल्याण की यात्रा को मजबूती प्रदान करेगी।
मुख्य अभियंताओं द्वारा उपस्थित अभियंताओं को प्रस्तुतीकरण के माध्यम से नवीनतम तकनीकों, उनके उपयोग और लाभों की विस्तृत जानकारी प्रदान की गई।
इसमें प्रमुख रूप से व्हाइट टॉपिंग तकनीक, जो सड़कों की उम्र 15-20 साल तक बढ़ाकर रखरखाव की आवश्यकता को कम करती है, तथा फुल डेप्थ रिक्लेमेशन (FDR) तकनीक, जो पुरानी सड़क सामग्री के पुनः उपयोग से किफायती और पर्यावरण-अनुकूल निर्माण सुनिश्चित करती है,शामिल थीं।
अल्ट्रा-हाई परफॉर्मेंस कंक्रीट (Ultra High Performance Concrete-UHPC) से हल्की और मजबूत सड़कें व पुल बनाए जाते हैं, जबकि वेस्ट प्लास्टिक का उपयोग सड़कों को अधिक टिकाऊ और प्रदूषण-मुक्त बनाने में सहायक होता है।
इसके अलावा, ग्लास फाइबर रिइनफोर्स्ट पॉलिमर (Glass fiber Reinforcement Polymer-GFRP) बार तकनीक के उपयोग से जंग-प्रतिरोधी, हल्का और मजबूत निर्माण संभव होता है, खासकर नमी वाले क्षेत्रों में।
माइक्रो-सर्फेसिंग (Micro Surfacing) तकनीक से सड़कों की ऊपरी परत को चिकना और मजबूत बनाया जाता है, जिससे पानी से सुरक्षा मिलती है और गड्डों की समस्या कम होती है। जियोग्रिड (Geo Grid) और ग्लासग्रिड (Glass Grid) तकनीक कमजोर मिट्टी वाले स्थानों पर सड़कों को अतिरिक्त मजबूती प्रदान करती है और दरारों को रोकने में सहायक होती है।
इसके अतिरिक्त, लोक-कल्याण सरोवर योजना के तहत सड़क निर्माण से निकली मिट्टी का उपयोग जल संरक्षण के लिए किया जाता है, जिससे भूजल स्तर में सुधार होता है। पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से पेड़ स्थानांतरण (Tree Shifting) तकनीक को अपनाया जा रहा है।
इस तकनीक से सड़क निर्माण के दौरान पेड़ों को काटने के बजाय सुरक्षित रूप से दूसरी जगह लगाया जा सकता है। इन सभी तकनीकों के माध्यम से मध्यप्रदेश में सड़क निर्माण कार्य को अधिक मजबूत, टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल बनाने की दिशा में प्रभावी प्रयास किए जा रहे हैं।
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