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 कथा व्यास पूज्य श्री इंद्रेश जी महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस पर बताया कि संसार में भी आज लोग पूतना की तरह आवरण ओढ़े हुए हैं, वे जैसे हैं, वैसे दिखते नहीं। लेकिन ठाकुर जी को सादगी और स्वाभाविकता प्रिय है। उन्होंने भगवान की विभिन्न लीलाओं जैसे अन्न के एक दाने से फल खरीदने और माता यशोदा को सताने की कथाओं का रोचक वर्णन किया। इस दौरान संगीतमय भजनों पर भक्तगण झूम उठे।

उन्होंने कथा में बताया कि भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना ने ऐसा सुंदर रूप धारण किया कि पूरा गोकुल उसके आकर्षण में आ गया। यहां तक कि माता यशोदा भी प्रभावित हो गईं और सोचने लगीं कि यदि उनका लल्ला कुछ वर्ष पहले जन्मा होता तो वे उसका विवाह पूतना से कर देतीं। लेकिन जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण उसकी गोद में आए, उन्होंने आंखें बंद कर लीं। पूतना ने अपने वास्तविक स्वरूप को छिपाया था, और भगवान को आडंबर पसंद नहीं।

उन्होंने यह भी बताया कि सहनशीलता ही आत्मचिंतन और मंथन का मार्ग है। यशोदा, देवकी, सुदामा, राधा, और पांडवों ने सहन किया, तभी ठाकुर जी उन्हें मिले। कुंभ नहाने की परंपरा भी समुद्र मंथन के दौरान गिरे अमृत की बूंद से जुड़ी है। कथा के समापन दिवस के समय परिवर्तन की सूचना भी दी गई और प्रभु को छप्पन भोग अर्पित किया गया। श्री महाराज ने कहा कि वे जल्द ही सागर पुनः आएंगे, जिससे भक्तगण आनंदित हो उठे।

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