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जीवन में चार प्रमुख पुरुषार्थ बताए गए हैं—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। पहले तीन पुरुषार्थों का अनुसरण करते हुए व्यक्ति स्वाभाविक रूप से मोक्ष की ओर बढ़ता है। धर्म का पालन, धनार्जन और इच्छाओं की पूर्ति करते-करते मनुष्य थक जाता है और निवृत्ति की भावना प्रबल होने लगती है, जिससे मोक्ष की कामना जन्म लेती है। किंतु मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग स्पष्ट नहीं होता।

परम पूज्य कथा व्यास पं.इन्द्रेष उपाध्याय जी के अनुसार, मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रेम आवश्यक है। यह प्रेम सांसारिक नहीं बल्कि ईश्वर के प्रति होना चाहिए, क्योंकि सांसारिक प्रेम स्वार्थ पर आधारित होता है और धीरे-धीरे क्षीण हो जाता है। वहीं, ठाकुर जी से जुड़ा प्रेम प्रतिदिन बढ़ता है। श्रीमद्भागवत कथा इसी प्रेमभाव को जागृत करने का साधन है।

इन्द्रेष महाराज ने कथा के तृतीय दिवस में बताया कि आत्मा का उत्थान ही परम धर्म है, जो प्रेम और विश्वास से उत्पन्न होता है। बिना पूर्ण विश्वास के कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता, और भागवत कथा यह विश्वास प्रदान करती है। कथा के माध्यम से भक्तों को भक्ति, प्रेम और सेवा का महत्व समझाया गया।

उन्होंने वृंदावन की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि सागर नगर की गलियों में भी वृंदावन का अनुभव होता है, अतः इसे 'लघु वृंदावन' या 'गुप्त वृंदावन' कहना अधिक उचित होगा। साथ ही, उन्होंने ठाकुर जी की सेवा, गोसेवा, और भक्ति की महत्ता को सुंदर भजनों के माध्यम से प्रस्तुत किया।

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