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सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी 2013 के एक आदेश जारी कर धार्मिक संरचनाओं के साथ-साथ, अदालत ने मूर्तियों की स्थापना पर भी फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की पीठ ने आदेश दिया, "अब से, राज्य सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों और फुटपाथों तथा अन्य सार्वजनिक उपयोगिता वाले स्थानों पर कोई भी मूर्ति स्थापित करने या कोई संरचना बनाने की अनुमति नहीं देंगे।"
इसी आदेश को नजीर मानकर मप्र उच्च-न्यायालय ने भी मार्च 2022 के अपने एक आदेश में भोपाल नगर निगम को इस आदेश का उल्लंघन करने पर जुर्माना लगाया था और भोपाल में कांग्रेस के नेता अर्जुन सिंह व रायसेन में आदिवासी योद्धा महारानी अवन्ती बाई की सार्वजनिक यातायात में बाधक मूर्ती को हटाने का आदेश भी दिया था।
इतना सब कुछ होने के बाद भी नगरीय निकाय मुख्य सड़कों के किनारे, चौराहों और सार्वजनिक उपयोगिता वाले स्थानों पर प्रतिमाएं स्थापित करने के फैसले ले रहे हैं और शासन से अनुमति मांगने के लिए पत्र लिखे जा रहे हैं । क्या इन्हें अदालतों की भाषा और मंशा समझ में नहीं आती है या ये खुद को इन सब से ऊपर मानते हैं ।
कम से कम सागर नगर निगम की परिषद् के ताज़ा फैसलों से तो कुछ ऐसा ही नजर आता है?
Sagar Watch News/ नगर निगम परिषद की 27 अगस्त एवं 25 अक्टूबर को आहूत की गई बैठक में नगर विकास एवं सौन्दर्यीकरण के विभिन्न विषयों पर परिषद द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा हेतु सभी विभागीय अधिकारियों की बैठक आयोजित की गई।
निगम आयुक्त द्वारा आयोजित इस बैठक में परिषद द्वारा लिए गए निर्णयों पर अभी तक क्या कार्यवाही की गई इस संबंध में संबंधित विभाग के अधिकारियों ने निगम अध्यक्ष को जानकारी दी।
बैठक में अन्य अहम् निर्णयों के अलावा यह भी बताया गया कि परिषद के निर्णय अनुसार राजघाट चौराहे पर भगवान लवकुश की प्रतिमा स्थापित करने के संबंध में शासन को पत्र लिखा गया है।
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