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रामायण के भरत और राम के भ्राता प्रेम पर बोलते हुए कथावाचक चिन्मयानन्द ने कहा कि - भरत जैसा प्रेम और भाई मिलना इस धरती पर  अब संभव नहीं लगता है।आज तो समाज में हमें यही देखने को नहीं मिलता  संपत्ति के पीछे भाइयों में हर जगह झगड़ा विवाद देखने को मिलता है  खेल परिसर के बगल वाले मैदान में चल रही श्री राम कथा के सातवें दिन  में भरत चरित्र और  दो भाइयों के बीच के  प्रेम का प्रसंग ही छाया रहा  

इसी सिलसिले में बापू ने सुंदरकांड की कथा का विस्तार करते हुए बताया कि  सुंदरकांड की शुरुआत में जामवंत जैसे वृद्ध की बात हनुमान जी महाराज जैसे नौजवान को पसंद आई इसलिए सुंदरकांड के व्याख्या में तुलसीदास जी ने इसका नाम सुंदरकांड रखा 

बापू ने कहा जिस दिन वृद्ध मां-बाप की बात नौजवान भाई बहनों को अच्छी लगने लगेगी उनके जीवन के प्रत्येक कांड सुंदर ही होने लगेंगे   बापूजी ने कहा कि संसार के सभी दुखों का निवारण श्री हनुमान जी महाराज की उपासना है क्योंकि हनुमान जी महाराज कलयुग के प्रत्यक्ष देव हैं और कण कण में व्याप्त हैं    श्री राम राज्याभिषेक के साथ सप्त  दिवसीय श्री राम कथा को परम पूज्य बापू जी ने विश्राम दिया 
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