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रजा फाउण्डेशन नयी दिल्ली तथा श्यामलम् सागर द्वारा सागर के अग्रज कवियों पर आयोजनों की श्रंखला का पहला आयोजन 'साहित्य सागर:एक'  वरदान सभागार में किया गया। जिसमें सागर के तीन महत्वपूर्ण साहित्यिक प्रतिभा संपन्न कवियों शिवकुमार श्रीवास्तव,राजा दुबे एवं माधव शुक्ल 'मनोज' के साहित्यिक अवदान पर तीन सत्रों में वक्ताओं द्वारा विचार प्रस्तुत किए गए । 

प्रथम सत्र में शिवकुमार श्रीवास्तव की कविता पर नीरज खरे भोपाल ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि "उनकी कविता संघर्षशील लोगों के पक्ष में आज भी मजबूती से खड़ी हुई है। जिसमें ग्रामीण जीवन के सभी पहलू समाहित हैं।" 

इसी सत्र के द्वितीय वक्ता एवं डॉ हरी सिंह गौर वि.वि. में हिंदी के सहा.प्रा.आशुतोष मिश्र ने  कहा कि शिवकुमार श्रीवास्तव बैचैनी और बदलाव के कवि हैं,एवं उनकी कविता शोषण के विरूद्ध शोषकों को लामबंद करने को प्रेरित करती है। 

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कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में सागर के प्रतिष्ठित कवि राजा दुबे के अनछुए साहित्यिक पहलुओं पर चर्चा की गई जिसमें सत्र के वक्ता ईश्वर सिंह दोस्त भोपाल ने राजा दुबे के साहित्यिक अवदान को रेखांकित करते हुए कहा कि "राजा दुबे बारीक किस्म के कवि हैं,उनकी कविता में सागर शहर की रागात्मकता,रोमांटिकता,दिखती है।  वे आधुनिकता और परंपरा के द्वंद में उच्च आधुनिकता के कवि हैं।" 

कार्यक्रम के तीसरे सत्र में माधव शुक्ल 'मनोज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पर सुबोध पाण्डेय
भोपाल एवं रानी अवंतीबाई वि.वि.सागर के सहा.प्रा.मिथलेश शरण चौबे ने वक्तव्य प्रस्तुत किया। प्रथम वक्ता सुबोध पाण्डेय ने कहा कि "गांव का हर पहलू उनके काव्य में दृश्यित होता है,जिसमें किसान,मजदूर, त्रासदी,भूख,पीड़ा विद्यमान है। उन्होंने मनोज की कविता का अंश "सूनी राह कटीला जंगल,चलते-चलते कभी मन,एक फूल से दुःख जाता है" प्रस्तुत किया। 

"द्वितीय वक्ता मिथलेश शरण चौेबे ने वक्तव्य का प्रारंभ हम कविता क्यों पढ़ते हैं,से किया जिसमें उन्होंने कहा कि "कवि अपने रचनात्मक संसार के द्वारा रोजमर्रा के औसतपन के ऊपर औदात्य की झलक दिखाता है।" उनकी कविता से अंश प्रस्तुत करते हुए कहा कि "हुई नुकीली दुनिया ऐसी,दिल को छेद रही" हमें समाज की वास्तविक स्थिति से रूबरू कराती है।  इसी श्रृंखला में 

चौथे सत्र का आरंभ उदयन वाजपेयी,ध्रुव शुक्ल एवं सह आयोजक संस्था श्यामलम् के अध्यक्ष उमा कान्त मिश्र की उपस्थिति में किया गया जिसमें सर्वप्रथम कवि ध्रुव शुक्ल ने तीनों कवियों पर समीक्षात्मक उद्बोधन प्रस्तुत करते हुए  कहा कि "सागर में इन तीनों कवियों पर इतना गंभीर और इतना गहरा कवियों की प्रवृत्ति गिनाने वाला संवाद प्रशंसनीय है।"  इसके साथ ही उन्होंने सागर शहर एवं साहित्य जगत से संबंधित संस्मरण श्रोताओं के मध्य अनूठी शैली में रखे। 

उदयन वाजपेयी जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि "गांव अतीत और भविष्य की चकरी चलता है,उसके लिए न अतीत मरता है और न ही भविष्य आतंकित होता है।" इस दौरान शहर के वरिष्ठ साहित्यकारों

लेखकों, कवियों सहित गणमान्य नागरिक,शोधार्थी,विद्यार्थी एवं साहित्यिक रसिक जन भारी संख्या में उपस्थित रहे जिनमें डॉ चंचला दवे,मदनकुमारी दुबे,डॉ. सुश्री शरद सिंह,डॉ विजय लक्ष्मी दुबे,दीपा भट्ट नाईक, संध्या सरवटे, एल एन चौरसिया,शिवरतन यादव, डॉ गजाधर सागर, डॉ एस एम सीरोठिया,अंबिका प्रसाद यादव,आर के तिवारी,टी आर त्रिपाठी, हरीसिंह ठाकुर, के एल तिवारी,वीरेंद्र प्रधान, प्रदीप पांडेय, डॉ आशीष द्विवेदी, अरुण दुबे, कपिल बैसाखिया, हरी शुक्ला, कुंदन पाराशर, संतोष पाठक, रमाकांत शास्त्री, मुकेश तिवारी, डॉ राकेश सोनी,ऋषभ‌ समैया, डॉ विनोद तिवारी, प्रभात कटारे,असरार अहमद, मुन्ना रावत, डॉ.जी एल दुबे, डॉ ऋषभ भारद्वाज,पी एन मिश्रा, अभिनंदन दीक्षित, पैट्रिस फुस्केले, डॉ नरेंद्र प्यासी, श्रवण ‌श्रीवास्तव, शिव नारायण सैनी, डॉ कल्पना शर्मा, प्राची खत्री, रचना राय,पवन रजक ,अमीश साक्षी के नाम उल्लेखनीय हैं।

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