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संरक्षक, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी
यह करिश्मा या तो कवि कर सकता है या अखबार , कवि अपनी कविता में आग और पानी को मिला सकता है । और अखबार आतिशबाजी के धुएं की जहरीला हवा को साफ बता सकता है।
इस बार मैं दीपावली के दिन स्वत भोपाल जहांगीराबाद के इलाके में था जहां बड़ी-बड़ी आवाज वाले सुतली बम्ब की आवाज से कान बहरे होने लगते थे ।
घरों की दीवालें हिलते लगती थीं। घरो में धुंंआ भर जाता था। रात्रि 2 बजे भी अन्य रह वासियों के साथ मैं इस प्रदूषण का शिकार हुआ हूं ।धुएं और प्रदूषण के प्रभाव से कल भी पीड़ित था और अभी भी हूं तथा कुछ दवाओं का प्रयोग भी करना पड़ रहा है ।
दरअसल आज देश के सभी महानगर दो हिस्सो में बंटे हैं । एक सत्ता संपन्नता और श्रेष्ठ वर्ग में और दूसरे गरीबों तथा सत्ता के चक्र से बाहर के लोगों के हैं ।
मुझे देश के इस विभाजन को देखकर 19 वी सदी के उस उपन्यास( टेल ऑफ ट्विन सिटीज)की याद आती है जिसमें उस समय के लंदन के हालात का वर्णन था जहां टेम्स नदी के एकतरफ सत्ताधीशों संपन्न लार्ड्स का लन्दन और दूसरी तरफ गरीबों अशिक्षितों और अपराधियो का लंदन था ।
यह विभाजन रेखा व्यवस्था के द्वारा खींची जाती है ।अमीरों और सत्ताधीशों की व्यवस्था अपने अलग टापू खड़े करती है और सारे साधनों का प्रयोग अपने लिए करती है और उसे ही विकास का मानक बताती है ।
लगभग यही स्थिति हमारे देश के महानगरों की है और भोपाल की भी । इस पुराने भोपाल में बारुद और धुंये वाले फटाखे चले थे ।
एक एक पटाखा इलाके को और लोगों के सीनों में धुंआ भर रहा था। यहां न तो हरियाली है न हरीत पटाखे हैं । और यहां तक कि प्रदूषण के आंकड़ो मे भी इस इलाके का कोई स्थान नहीं है।
दिल्ली के प्रदूषण की कमी मै मान सकता हूं कि वहां सुप्रीम कोर्ट ने फटाखो के ऊपर रोक लगाई थी। स्वत पूर्व मुख्य न्यायधीश श्री चंन्दचूड ने यह टिप्पणी की थी कि मैंने सुबह का घूमना बंद कर दिया है कि सुबह की हवा बहुत जहरीली है ।
परंतु देश के महानगरों का अध्यन वस्तु परक होना चाहिए । मैं मानता हूं कि अब सरकार जनमानस में प्रचलित परंपराओं का प्रतिकार नहीं कर सकतीं प्रतिकार करना तो दूर उन्हें प्रोत्साहित करतीं है ।
जब परंपराओं के नाम से व अंधविश्वास के नाम से वोट की खेती होती हो और फसल कटती हो तब विज्ञान और तर्क की चर्चा कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी कौन पटेगेगा। राजनीति ,सत्ता मीडिया और संपन्नता सभी को अंधविश्वास से खाद पानी मिल रहा है ।
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