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 भारतीय ज्ञान परम्परा को राष्टीय शिक्षा नीति 2020 का केन्द्रीय स्तम्भ माना गया है स्वदेशी भारतीय ज्ञान से दुनिया  को परिचित कराना के मकसद से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़े विषयों को पाठ्य चर्चा में जोड़ने की पहल की है जिसका मुख्य उद्देश्य  प्राचीन भारत में दर्शन, विज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष एवं संगीत जैसे अनेक क्षेत्रों में विशिष्ट ज्ञान भरा हुआ है। 

यह विचार प्राचार्य डाॅ सरोज गुप्ता ने पं. दीनदयाल उपाध्याय, शासकीय कला एवं वाणिज्य ‘‘अग्रणी‘‘ महाविद्यालय, सागर में भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ के अंतर्गत प्राचीन भारत-सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति विषय पर आयोजित व्याख्यान माला में अपने उद्बोधन के दौरान व्यक्त कियेव्याख्यान माला के साथ ही  डाॅ मधु श्रीवास्तव की स्मृति में भारत में सहिष्णुता विषय पर पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया  जिसमें दिनेश श्रीवास्तव एडव्होकेट द्वारा 70 प्रतिभागियों को सर्टिफिकेट शील्ड व मेडल प्रदान किये गये। 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गौरीशंकर चौबे वरिष्ठ चिकित्सक ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुये भारतीय ज्ञान परम्परा की महत्वपूर्ण व्याख्या करते हुये कहा कि रामायण के दोहे हो या तुलसी की चौपाई या वेदों की ऋचाऐं सभी में सहिष्णुता का मार्ग बताया गया है। भारतीय संस्कृति के मूल में वसुधैव कुटम्बकम् का विचार सभी को आत्मसात करने का मार्ग प्रशस्त करता है। भारतीय ज्ञान परम्परा भारत की समृद्ध विरासत है जो धर्म का मूल आधार भी है। 

झाॅसी से पधारे विनोद मिश्र सुरमणि द्वारा लोककलाओं के समुन्नत विकास के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हुये कहा कि अगर चल सको तो स्वयं चलो तुम सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी। 

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कार्यक्रम का संचालन एवं आभार डाॅ अमर कुमार जैन, जिला नोडल अधिकारी स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन योजना ने किया। कार्यक्रम में डाॅ गोपा जैन, डाॅ रंजना मिश्रा, डाॅ संगीता मुखर्जी, डाॅ इमराना सिद्धीकी, डाॅ शुचिता अग्रवाल, डाॅ अभिलाषा जैन, डाॅ प्रतिभा जैन, डाॅ भरत शुक्ला, डाॅ वसुंधरा गुप्ता, डाॅ रोशनी चौधरी ,  चंदन अहिरवार, चन्द्रप्रताप सिंह सहित 200 विद्यार्थी उपस्थित थे।
 

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