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देश में   मप्र सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे समय में देश में मौजूद लोकतंत्र की दिशा और दशा के बारे में चर्चा न हो यह मुमकिन नहीं है  कहते हैं देश में समय के साथ सब कुछ बदलता है। लेकिन लोकतंत्र नहीं बदला, भले ही उसके तौर तरीकों में कुछ बदलाव आता दिख रहा है। लोकतंत्र के तेवर बदलने में सियासत की अहम भूमिका बताई जाती है और सियासत वक्त की नजाकत को देख कर न बदले यह भी हो नहीं सकता

सियासत पल पल में अपने तेवर बदलती है लेकिन उसका मकसद कभी नहीं बदलता है। सियासत के तेवर लोकतंत्र के सिद्धांतों के मुकाबले उस पर काबिज लोगों के इरादों और मौजूदा राजनीति के हालातों  से ज्यादा तय होते हैं। सियासी दलों में ऐसे लोगों का दखल बढ़ता दिख रहा है जो किसी भी कीमत पर सता में आना चाहते हैं और कभी भी सत्ता से दूर नहीं होना चाहते हैं। 

सियासत में में बेदाग छवि, ईमानदार, समाज व देश के हित में कार्य करते हुए जीवन लगा देने वाले व्यक्तियों को ही सत्ता की बागडोर सौंपने का दौर भी आता रहता है। लेकिन सत्ता का स्वाद चखने के बाद सियासी दलों के इरादों और कार्य शैली में बदलाव आता दिख रहा है

समाज में अर्थ (धन) का प्रभाव बढ़ने से ऐसा कहना मुश्किल लगने लगा कि सब कुछ हानि-लाभ के गणित से संचालित नहीं हो रहा है सियासी दलों ने रातों-रात सत्ता में आने की महत्वाकांक्षा के चलते जमीन से जुड़े स्वाभाविक नेतृत्व के बदले धनकुबेरों और ऐसे लोगों को चुनावों में आगे करना शुरू कर दिया जिनकी कार्य शैली से लोकतंत्र की छवि को दागदार होने का खतरा बढ़ने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है

दागदार छवि और धनकुबेरों को चुनावी मैदान में आने का चलन बढ़ने की चर्चाओं के बीच लोगों की राय को छोटे-छोटे प्रलोभन, लुभावने वायदों और दबाव के द्वारे प्रभावित करने के सियासी दलों के प्रयासों में लगातार इजाफा नहीं हो रहा हो  ऐसा, मीडिया में आ रही ख़बरों को देखकर, नहीं कहा जा सकता है

जहां लोकतंत्र में समाज को जांत-पांत के भेदभाव से मुक्त कर सब के भले की भावना से काम करने की सीख दी जाती रही है । वहीं सियासी दलों द्वारा  जनता को वोट बैंक के चश्मे से जातियों में बटे धडों के रूप देखने के चर्चे हो रहे हैं। उनको लगता है जनमत को जातीय धडों में बांटकर धन-बल-प्रलोभनों के द्वारा आसानी से और कम समय में प्रभावित किया जा सकता है

ऐसे बदलाव के दौर में जनता को ही आगे आना पड़ेगा। जनता को सूझबूझ दिखाते हुये, लुभावने वायदे करने वाले, तात्कालिक लाभ देने वाले, जातीय एकता की कसमें खिलाकर समाज को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने की मंशा रखने वाले कथित नेताओं को सबक सिखाना होगा और उनसे सतर्क रहना होगा ताकि उनके  धन-बल और मीठी-मीठी बातें के चलते उनके सत्ता में आने के कुत्सित इरादे पूरे न हो सकें 

  

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