इलेक्शन, Election Assembly, 2023
SAGAR WATCH/ चुनावों के मौसम में हर शहर-गाँव और उनके मुहल्लों-चौपालों की फिजा ही बदली बदली सी नजर आने लगती है। ऐसा लगता है जैसे अमूमन हर गली-चौबारे चुनावी चर्चाओं के गढ़ में तब्दील हो गए हों।
यह भी देखा जाता है कि ऐसे चर्चा के ठिकानों के आस-पास से गुजरने वाला कमोबेश हर शख्स चर्चा के इन सत्रों में वक्ता या श्रोता के रूप में अपना योगदान दिए बिना आगे भी नहीं बढ़ पाता है।
चुनाव के इस मौसम में मप्र ही नहीं अन्य चार राज्यों के हालत भी ऐसे ही नजर आ रहे हैं। फिलहाल मप्र में ये मौसमी समीक्षक और विश्लेषक एक से ज्यादा मुद्दों पर धुआंधार बल्लेबाजी करते नजर आ रहे हैं। चुनावी चर्चा में सबसे पहले जो मुद्दा उठा वह प्रदेश में "सत्ता विरोधी लहर" के उछल भरने का रहा।
प्रदेश में भाजपा को सत्ता काबिज़ हुए दो दशक पूरे होने को है। लोग ने प्रत्यक्ष व् परोक्ष रूप से जाहिर किया कि यह सही है कि लम्बे समय से एक से ही चेहरे देख कर ऊब सी होने लगी हैं इसलिए वे नए चेहरे ये या नयी सरकार की चर्चाओं को हवा देते नजर आ रहे हैं।
वहीं प्रदेश में परवान चढ़ रही बुलडोज़र संस्कृति, सरकार के खिलाफ बोलने वालों पर मुक़दमे लादे जाने की ख़बरों को देख-देख कर एक बड़ा वर्ग सरकार के काम काज पर नाक-मुंह सिकोड़ता दिख रहा है।
मप्र में चुनावी जंग मुख्यतः भाजपा और कांग्रेस की बीच होने की बात तो लगभग हर कोई स्वीकारता दिख रहा है, लेकिन तीसरी पक्ष के रूप में आम आदमी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी,समाजवादी और निर्दलीय प्रत्याशियों को लेकर चर्चाएँ खूब हो रहीं हैं।
लोगों ने कुछ हद तक इस बाद पर असंतोष जाहिर किया है की आम आदमी पार्टी को जितने जोश से मप्र में इन चुनावों में उतरना चाहिए था वह नहीं हुआ। पार्टियों के टिकिट वितरण के तरीकों को लेकर भी सड़कों पर खूब बहस-मुबाहिसों का दौर चल रहा है।
समीक्षकों का एक वर्ग मप्र में भाजपा द्वारा गुजरात फार्मूला अपनाये जाने के बात कह कर एक साल पहले से हवा बनाये हुए था। लेकिन पार्टी द्वारा अधिकांश सीटों पर पुराने चेहरों को ही उतरने से यह वर्ग खासा नाराज चल रहा है। अब वह बढ़ चढ़ कर यह तर्क देता फिर रहा है कि चेहरों में बदलाव नहीं किये जाने से सत्ता विरोधी लहर मजबूत हो रही है।
कांग्रेस पार्टी द्वारा किये गए टिकिट वितरण को लेकर भी इन स्थानीय समीक्षकों और विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी की गुटबाजी के चलते कई दमदार प्रत्याशी इस गुटबाजी की भेंट चढ़ गए हैं इसी के कारण प्रदेश भर में नाराज कार्यकर्ता टिकिटों के बदलाव की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं ।
इस के चलते कुछ स्थानों पर पार्टी को टिकिट बदलना भी पड़े हैं। एक वर्ग दबी जुबान से यह भी कह रहा है की कांग्रेस ने कुछ टिकिट तो ऐसे लोगों को दिए हैं जिनको देख कर लगता है उन टिकिटों पर फैसला विरोधी पार्टी से किसी डील के चलते लिया गया है।
चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा पर तब तक सियासी दलों की रणनीति, प्रत्याशियों के चाल-चलन, इजराइल-हमास की जंग, मोदी-अमित शाह की जोड़ी, विकास और उससे जुड़े भ्रष्टाचार के किस्से और मीडिया द्वारा किए जाने वाले हार-जीत के दावों को लेकर मौसमी सियासी धुरंधरों को फुरसत नहीं मिलने वाली है।
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