Assembly Election-2023,
SAGAR WATCH/ वैसे तो राजनैतिक दलों के बीच नेताओं का एक दल को छोड़ कर दूसरे दल में आने-जाने का चलन कोई नयी बात नहीं है। राजनीति के जानकार हरियाणा प्रदेश की सियासत को ही "आया राम गया राम" राजनीति का केंद्र मानते आये हैं। पिछले डेढ़ दशक से यह चलन मप्र में भी धीरे-धीरे अपने पैर पसारता नजर आता रहा है,हालाँकि बहुत हद तक एक-तरफ़ा बना रहा। लेकिन मप्र के चुनावी मौसम में अब यह चलन न केवल दो-तरफा बनता दिख रहा है बल्कि यहाँ की सियासत में नए गुल खिलाने को बेताब भी नजर आ रहा है।
"आया राम-गया राम" चलन के लम्बे समय तक एकतरफा बने रहने की वजह भी किसी से छुपी नहीं है।में मप्र में जहां भाजपा लगभग दो दशक से सत्ता पर काबिज़ रही वहीं कांग्रेस सत्ता से दूर रहने के अलावा अन्दर से भी बिखरी-बिखरी से बनी रही। सो नेताओं की रुचि सत्ताधारी दल से किसी और दल में जाने की कम ही रही। जबकि इस दौरान कांग्रेस दल को अलविदा कहकर भाजपा का दामन थामने वालों के सिलसिला तेज रहा।
लेकिन वर्ष 2018 में मप्र में कांग्रेस के सत्ता में लौटते ही "आया राम गया राम" के चलन ने तूफानी गति पकड़ ली। इस भागम-भाग की सबसे बड़ी घटना को कांग्रेस पार्टी के सिंधिया गुट ने अंजाम दिया। जिसके चलते कांग्रेस की 15 महीने की सरकार चारों खाने चित्त गिर पड़ी और भाजपा ने अपनी खोयी हुई सत्ता फिर "हथिया" ली।
इस घटनाक्रम से मप्र में "आयाराम गयाराम चलन" फिर जीवंत होने लगा। सियासी हालात भी बदलने लगे। पहले लगभग एकतरफा से चल रहा राजनैतिक दलों को छोड़ कर जाने व् आने का प्रवाह दोनों तरफ बढ़ने लगा। इसकी वजह विपक्षी पार्टियों में भी आगामी चुनावों के मद्देनजर गतिविधियों का बढ़ना भी रही।
हालाँकि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की सरकार बनी और उसे इन चुनावों में महज 41 फीसदी के लगभग वोट मिले लेकिन इन चुनावों के कुछ महीनों ही बाद हुए 17 वीं लोकसभा के चुनावों में उसके द्वारा हासिल मतों का आंकड़ा घटकर 35 फीसदी के आसपास अटक गया। जबकि भाजपा को सरकार नहीं बना पाने के बावजूद विधानसभा चुनाव में 41 फीसदी मत मिले थे और यही आंकड़ा तुरंत बाद हुए लोकसभा चुनावों में बढ़कर 58 फीसदी पर पहुँच गया था।
मप्र में भाजपा की सरकार दोबारा बनने व लोकसभा चुनावों में 29 में से 28 सीटें हासिल करने से पार्टी का हौसला काफी बढ़ा हुआ नजर आया। लेकिन इस घटनाक्रम के बाद भी कांग्रेस दल ने जिस तरह काम किया उससे लगने लगा कि सरकार गिरने के सदमे और लोकसभा चुनावों की करारी शिकस्त के बावजूद भी उसने अपना हौसला बनाये रखा।
राजनीति के खिलाडियों की माने तो मई 2023 में हए कर्नाटक विधानसभा के नतीजों से विपक्षी पार्टियों को और अधिक ऑक्सीजन मिलने लगी। इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी को न केवल भाजपा से दोगुने से भी ज्यादा सीटें मिलीं बल्कि उनकी सरकार भी बन गयी।
बस इन्ही बदलावों से देश की राजनीति में उतार-चढाव आने लगे। भाजपा से इतर पार्टियों के सत्ता में आने की उम्मीदें बढ़ने लगीं। इस के साथ ही असंतुष्ट और उपेक्षित महसूस करने वाले नेताओं का बेहतर भविष्य की तलाश में एक से दूसरे दलों में जाने और आने का अब तक एकतरफ़ा सा चलने वाला सिलसिला दो तरफ़ा चलना शुरू हो गया।
बदले हुए माहौल में जैसे ही कोई सियासी दल अपने प्रत्याशियों की सूची जारी करता है वैसे ही उस की पार्टी के असंतुष्ट, और उपेक्षित महसूस करने वाले और अति महत्वाकांक्षी नेताओं की पार्टी छोड़ने और दूसरे दल का दामन थामने की घोषणाएं सामने आने लगीं।
मिसाल के तौर पर 15 अक्टूबर 2023 को कांग्रेस पार्टी द्वारा मप्र के 144 विधानसभा क्षेत्रों के लिए अपने प्रत्याशियों के नामो की सूची जारी की। प्रत्याशियों के नामों की घोषणा होते है पार्टी छोड़ने वालों का ताँता लग गया। पार्टी से त्यागपत्र देने वालों में ,टीकमगढ़ जिले में खरगापुर के कांग्रेसी नेता अजय सिंह यादव, धार जिले से पूर्व सांसद गजेन्द्र सिंह राजुखेड़ा, उज्जैन उत्तर विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी कर रहे कांग्रेस के नेता विवेक यादव और सतना जिले में नागौद विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी कर रहे और अजय सिंह के बेहद करीबी बताये जा रहे पूर्व विधायक यादवेन्द्र सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं।
भाजपा के हाल भी इससे अलग नहीं रहे। भाजपा मप्र में प्रत्याशियों की अब तक चार सूचियाँ जारी कर चुकी है। उसकी पहली सूची 17 अगस्त को जारी हुई थे जिसमें 39 नाम शामिल थे। चौथी सूची में 57 प्रत्याशियों के नाम जारी किये। इस तरह मप्र में भाजपा अब तक कुल 230 स्थानों में से 136 स्थानों पर प्रत्याशियों के नाम घोषित कर चुकी है।
भाजपा की अबतक जारी हुईं सूचियों से नाखुश नेताओं ने भी बगावत शुरू कर दी है इसी सिलसिले में सतना विस सीट से वहां के सांसद को प्रत्याशी बनाये जाने पर वहां के भाजपा नेता रत्नाकर चतुर्वेदी जो मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के रिश्तेदार बताये जाते हैं बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।
इसके अलावा मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने विधानसभा और भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। पूर्व बीजेपी सांसद लक्ष्मीनारायण यादव के बेटे और सुरखी विधानसभा से 2018 में बीजेपी प्रत्याशी रहे सुधीर यादव ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है,शिवपुरी की कोलारास विधानसभा से बीजेपी विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने भाजपा से अलग होकर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए, सुसनेर विधायक राणा विक्रम सिंह के भाई राणा चितरंजन सिंह ने कांग्रेस का हाथ थामा।
शायद इसीलिए चुनावों के समय को "आया राम गया राम" चलन के लिए सबसे मुफीद और उर्वर समय माना जाता है। इस मौसम में दल-बदल की फसल खूब फलती-फूलती है। हालांकि राजनीति के पंडित बताते हैं कि सत्ताधारी पार्टी और विपक्षी पार्टी के बीच मुकाबला बराबरी जैसा लगने के हालातों में भी यह फसल खूब लहलहाती है और गुल खिलाती है।
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