World Environment Day-  संक्रामक प्रकृति के होते हैं  जैव अपशिष्ट

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डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के फार्मेसी विभाग में विश्व पर्यावरण दिवस एवं मिशन लाइफ के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं स्वच्छता विभाग द्वारा बायोमेडिकल वेस्ट के प्रबंधन हेतु जागरूकता के उद्देश्य से व्याख्यान एवं कार्यशाला का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता डॉ. अभिषेक जैन ने व्याख्यान के दौरान बताया कि मिशन लाइफ भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित पर्यावरण जीवन शैली की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु एक वैश्विक कार्यक्रम है.

 डॉक्टर जैन ने बताया कि बायोमेडिकल कचरा ऐसा कचरा है जिसमें संक्रामक या संभावित संक्रामक सामग्री होती है. ये अपशिष्ट मनुष्यों और जानवरों के निदान, उपचार और टीकाकरण और शैक्षणिक अनुसंधान प्रयोगशालाओं जैसे माइक्रोबायोलॉजी, जूलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, वनस्पति विज्ञान, रसायन शास्त्र, अपराध शास्त्र, फार्मास्यूटिकल साइंस आदि के रिसर्च प्रयोगशालाओं के दौरान उत्पन्न होते हैं. 

 जैव अपशिष्टों का उचित निपटान एक गंभीर समस्या है, ये अपशिष्ट संक्रामक प्रकृति के होते हैं. इनका व्यवस्थित ढंग से निपटान न होने से संक्रमण और प्रदूषण की संभावना रहती है, जिसका मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

कई बार इन अपशिष्टों को अनुपचारित स्थिति में फेंक दिया जाता है, जला दिया जाता है या नदी व नालों आदि में प्रवाहित कर दिया जाता है. इन अपशिष्टों को अन्य ठोस अपशिष्टों के साथ मिलाने से समस्या और भी गंभीर हो जाती है. 

 

अतः इन जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का समुचित प्रबंधन आवश्यक है. जैव चिकित्सा अपशिष्ट विभिन्न कलर कोड के अनुसार 4 श्रेणियों में बाँटा गया है: पीले कंटेनर की श्रेणी: इसमें पशु अपशिष्ट, मिट्टी का कचरा, एक्स्पायर्ड दवाएँ, रासायनिक कचरा, रासायनिक तरल अपशिष्ट, सूक्ष्म जीव विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और अन्य नैदानिक ​​प्रयोगशाला अपशिष्ट आदि शामिल हैं.

 लाल रंग के कंटेनर की श्रेणी: इसमें दूषित अपशिष्ट, ट्यूबिंग जैसे डिस्पोजे़बल आइटम से उत्पन्न कचरा, सीरिंज, पेशाब की थैलियाँ, दस्ताने इत्यादि अपशिष्ट शामिल हैं. नीले रंग कंटेनर की श्रेणी: इसमें नुकीली धातुओं वाले अपशिष्ट शामिल हैं। 

सफेद रंग कंटेनर की श्रेणी: इसमें काँच के बने पदार्थों के अपशिष्ट शामिल हैं बायो मेडिकल वेस्ट का लगभग 10%-25% ही खतरनाक होता है. भारत सरकार के जैव चिकित्सा अपशिष्ट अधिनियम-2016 एवं जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018 बायो के तहत समस्त गैर सरकारी एवं सरकारी चिकित्सा इकाईयों और शैक्षणिक अनुसंधान संस्थान को उनके यहां से निकलने वाले बायो मेडिकल अपशिष्टों का प्रभावी रूप से प्रबंधन करना आवश्यक है. 

यानी अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लीनिक, डिस्पेंसरी, पशु चिकित्सा संस्थान, पशु-घर, पैथोलोजिकल प्रयोगशालाएँ, रक्त बैंक, आयुष अस्पताल, क्लीनिकल संस्थान, शोध अथवा शैक्षणिक संस्थाएं, स्वास्थ्य कैम्प, अथवा शल्य कैम्प, टीकाकरण कैम्प, रक्त दान कैम्प, विद्यालयों के प्राथमिक उपचार कक्ष, सामान्य प्रयोगशालाएं एवं शोध प्रयोगशालाएँ जैव अपशिष्ट की प्रबंधन नियम उन सभी व्यक्तियों पर लागू है जो किसी भी रूप में जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का जनन, संग्रहण, भंडारण परिवहन, उपचार, व्ययन करते हैं.

 व्याख्यान के बाद प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए एक कार्यशाला का आयोजन भी किया गया. कार्यशाला में डॉ. भूपेंद्र पटेल और डॉ. जैन द्वारा उपस्थित छात्रों रिसर्च स्कॉलर्स और फैकल्टी को बायोमेडिकल वेस्ट पृथकीकरण का अभ्यास कराया गया. कार्यक्रम में प्रो संजय जैन, प्रो एम ल खान प्रो.अस्मिता, प्रो वंदना सोनी ,प्रो नवीन कांगो, डॉ. टी.आर. वेदरे, डॉ. सीपी उपाध्याय, डॉ श्वेता, डॉ. मुकेश सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं, रिसर्च स्कॉलर, शिक्षक गण, कर्मचारी गण उपस्थित रहे.
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