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आईजी बंगला से सिविल लाईन रोड पर श्री हनुमान दुर्गा भैराव धाम में संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में कथा व्यास आचार्य अरविंद भूषण ने कथा के तीसरे दिन ध्रुव  चरित्र एवं जड़भरत की कथा सुनायी। 

वैवश्वत मनु शत्रुपा के यहां दो पुत्र उत्तनपाद और प्रियवृत्त एवं तीन पुत्रियां देवहुति, आकृति, प्रसूती हुई है। राजा उत्तानपाद के यहां दो रानियां है। एक का नाम सुनीति और दूसरी स्वरूची है, रानी सुनीति के यहां पुत्र  ध्रुव  ने जन्म लिया।  ध्रुव  जब अपने पिता की गोद में बैठे थे उसी समय उनकी दूसरी मां ने उन्हें गोद से उठाकर कहा इस गोद में बैठने के अधिकारी तभी होगे जब  कौख से जन्म लोगें। 

बालक धु्रव की उस सयम पांच वर्ष की अवस्था थी। बालक धु्रव ने अपनी मां सुनीति को यह सभी वृतान्त सुनाया। मां ने कहा बेटा तुम्हारी दूसरी मां ने ठीक ही कहा है। तुम परमपिता परमात्मा की गोद में बैठने हेतु उनकी तपस्या करों। बालक ध्रुव  मां के आदेश से वन में तपस्या के लिये निकल पड़ते है। 

रास्ते में सद्गुरु नारद जी द्वारा परीक्षा ली गई कि यह बालक घोर जंगल में कैसे तस्पया करेंगा और उन्होंने गुरु मंत्र दिया। धु्रव ने कठोर तपस्या करके पहले जल, वायु और बाद में स्वांस तक रोकने जैसी कठोर तपस्या करके बचपन में ही भजन के प्रभाव से भगवान को पाया। कथा में आगे बताया गया कि हमें अच्छे कर्म करना चाहिये। 

जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल प्राप्त होता है। व्यक्ति के बुरे कर्म उसके पंतन का करण बनते है। किसी के पास कुछ भी प्राप्त हो जाये धन संपत्ति, पद किन्तु उसे घमंड, अभिमान नही होना चाहिये। शुक्रवार को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जायेगा एवं भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जायेगा। 


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