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Shekhchilli Ki Diary- मार्च  सेमिनारों के आयोजन व शेष बजट को ठिकाने लगाने का महीना

सागर वॉच-
शेखचिल्ली की डायरी-15 

हर साल मार्च का महीना सभी के लिए किसी न किसी रूप में बड़ा अहम माना जाता है। सरकारों के लिए वित्तीय वर्ष का अंतिम महीना होने की वजह से  बचे हुए बजट को ठिकाने लगाने का लक्ष्य रहता है। इसलिए विभागों में उत्सव के जैसा माहौल बना नजर आता है। देर रात तक कार्यालय खुले रहते हैं। 

दिन में कभी भी हाथ न आने वाले कर्मचारी व अधिकारी भी आधी-आधी रात तक कार्यालयों में डटे नजर आते हैं। खान-पान के दौर भी चलते रहते हैं। कार्यालय में साल भर की शेष बची निधि को निपटाने के मानसिक दबाव व आंतरिक उत्साह से उपजने वाली थकान को ठिकाने लगाने के लिए चलन में बने सभी उपायों का भी सहारा लिया जाता है।

इस आपाधापी मे काम करने के उत्साह में कभी कभी कुछ गड़बड़ियां भी हो जातीं हैं। एक विभाग में तो ऐसा हुआ कि कंप्यूटर की खरीद के रातों-रात आर्डर जारी हुए और दूसरे दिन सूर्य ढलने से पहले ही कंप्यूटरों का हजार किमी दूर स्थित कंपनी के आफिस से परिवहन भी हो गया और संबंधित विभाग में उनके संस्थापन किए जाने की प्रमाण पत्र भी जारी हो गया। 

लेकिन कुछ दिनों बाद जब हकीकत में खरीदी आदेश के मुताबिक कंप्यूटरों की आपूर्ति की गई तो उनके निर्माण की तारीख उनकी खरीदी व संस्थापन की तारीख से दो महीने बाद की निकली।


हालांकि प्रशासनिक विभाग ही इस परंपरा का हिस्सा नहीं है । उच्च शिक्षा संस्थान भी बजट को ठिकाने लगाने की होड़ में पीछे नहीं रहते हैं। जैसे विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में भी मार्च के महीने में सेमीनारों के धुंआधार आयोजन शुरू हो जाते हैं। विश्वविद्यालय व कॉलेज के विभिन्न विभागों में दूसरे विश्वविद्यालय व महाविद्यालयों से अपने मित्रवत शिक्षकों को वक्ताओं के रूप में आमंत्रित करते हैं।

बाद में ऐसे ही आमंत्रित विशेषज्ञ  व्यवहार लौटाने की तर्ज पर जिन संस्थानों में जाते हैं वहां के शिक्षकों को अपने यहां बुला लेते है। ऐसे ही सहयोग से सेमिनारों का आयोजन हो जाता है और सरकार का पैसा बर्बाद होने से बच जाता है। अध्ययन -अध्यापन की बातों के साथ मौज-मस्ती पार्टी और घूमना-फिरना भी हो जाता है।

वैसे तो ढ़ेरों वजह हैं जिनके आधार पर मार्च के महीने के महात्म्य को बताया जा सकता है। लेकिन मार्च में माह में हिंदू पांचाग के अनुसार नए साल की शुरू आत व देश में नए वित्तीय वर्ष की शुरूआत इस महीने की अहमियत को बहुत ज्यादा ही बढ़ा देता है। यही वो महीना है जिसमें होली के रंग व बंसत ऋतु की बहार भी लोगों के तन-मन को  मस्ती के रंग व मानसिक उल्लास से सराबोर करती रहती है।