Sagar Watch News/ आज के स्टार्ट-अप्स को पर्यावरणीय स्थिरता पर विशेष ध्यान देना होगा। नवाचार केवल आर्थिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी आवश्यक है। 2047 तक भारत को 15 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य में स्टार्ट-अप्स की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
स्टार्टअप्स के फेल होने का एक प्रमुख कारण यह है की ये अल्पकालिक समाधानों पर विचार करते है जिससे उन्हें अनेक चुनौतियो जैसे अनुदान की कमी, मापनीयता, और बाजार में प्रतिस्पर्धा आदि का सामना करना पड़ता है।
यह विचार ए.एस.बी.एन. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आर.के. बाल ने मुख्य वक्ता के तौर पर डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के अपराध शास्त्र और फोरेंसिक विज्ञान विभाग एवं वाणिज्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में 'पर्यावरणीय स्थिरता, हरित प्रौद्योगिकी, नवाचार एवं स्टार्ट-अप वेंचर्स: पृथ्वी पर और उससे परे' विषय पर चल रहे दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन चतुर्थ एवं तकनीकी सत्र में अपने उद्बोधन के दौरान व्यक्त किये ।
इसी सिलसिले में उन्होंने 'स्टार्ट-अप वेंचर्स: नवाचार और स्थिरता' पर रखते हुए कहा कि स्टार्ट-अप्स को नवाचार और स्थिरता के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए ताकि दीर्घकालिक विकास हो सके।भारतीय स्टार्ट-अप्स के
सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों का उदाहरण सहित समझाया ।
उन्होंने टेस्ला, पेटीएम और बायजूस के उदाहरण से यह बताया गया कि कैसे टेस्ला ने इलेक्ट्रिक वाहनों के माध्यम से स्थिरता को बढ़ावा दिया और कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद की। वहीं, भारत में पेटीएम ने डिजिटल पेमेंट्स के क्षेत्र में नवाचार करते हुए वित्तीय समावेशन को मजबूत किया, जबकि बायजूस ने डिजिटल शिक्षा को सुलभ बनाकर नए अवसर पैदा किए।
विश्वविद्यालय के अभिमंच सभागार और कौटिल्य भवन में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनो माध्यम से आयोजित सम्मेलन के सत्र में दूसरे मुख्य वक्ता पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर पी आर अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में भारतीय अर्थव्यवस्था को दो युगों में विभाजित किया—1947 से 1991 और 1992 से वर्तमान तक—और समझाया कि कैसे इन कालखंडों में आर्थिक नीतियों, बाजार उदारीकरण और स्थिरता के प्रयासों में बदलाव आए हैं।
उन्होंने कहा कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए स्टार्ट-अप्स को स्थायी और पर्यावरणीय रूप से अनुकूल मार्ग अपनाने होंगे। प्रो. अग्रवाल ने बायोफ्यूल, एथेनॉल मिश्रण ईंधन और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे नवीन शोध क्षेत्रों की महत्ता पर जोर दिया, जो प्रदूषण कम करने के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार भी बढ़ाएंगे। साथ ही, उन्होंने कहा कि स्टार्ट-अप्स को प्रोत्साहित करने के लिए जलवायु संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु वैज्ञानिक शोध महत्वपूर्ण हैं।
मिश्रित रीति में संचालित कार्यक्रम जिसमें देश-विदेश से आए प्रमुख शिक्षाविदो ने अपना व्याख्यान एवं शोध पत्र प्रस्तुत किया जिसमें अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, बेल्जियम, आईआईटी मद्रास, आईआईटी बॉम्बे, आदि प्रमुख रहे। कार्यक्रम के संचालन में प्राध्यापक जे. के. जैन, प्रो ममता पटेल, डॉ वंदना विनायक, डॉ रूपाली सैनी का विशेष सहयोग रहा ।