Guru Poornima | Sagar | Muktanand Ji |
Sagar Watch News। सागर जिले में अध्यात्म योग और आयुर्वेद की त्रिवेणी माने जाने बाले श्री परमहंस आश्रम अमृतझिरिया, देवरीकलां में गुरु पूॢणमा महा महोत्सव सेवा सुमिरण और समर्पण के साथ गुरु पूजन कर मनाया गया। इस अवसर पर हजारों श्रद्धालु जुटे।
आयोजित सत्संग में अपने आर्शीवचन में परमहंस संत श्री मुक्तानंद जी महाराज ने कहा कि अनेक समस्याओं के अनेक सवाल आप सबके होते हैं, लेकिन इन सभी सवालों का एक ही जवाब है कि आप अपने पुण्य की वृद्धि करें। किसी भी तरह की समस्या हो पुण्य बढ़ने से वो समाप्त हो ही जाती है। आपका कल्याण भी होता है।
अब सवाल यह है कि पुण्य की वृद्धि कैसे हो? इसके लिए परमहंस श्री मुक्तानंद जी महाराज ने कहा कि उन्हें गुरुकृपा से इसकी सहज, सरल और पूर्ण प्रभावी उक्ति 'निर्वाणी मुद्रा"के रूप में प्राप्त हुई है।
इसका अभ्यास करना चाहिए। कठिन कुछ नहीं होता, बात सिर्फ अभ्यास की होती है। मछली नदी के विपरीत चल लेती है और हाथी बह जाते है। इसी तरह चींटी रेत और शक्कर को कुशलता से अलग-अलग कर लेती है।
आप सभी को पुण्य वर्धक निर्वाणी मुद्रा अवश्य करना चाहिए। सत्संग में महाराज जी ने सभी शिष्यों और श्रद्धालुओं को इसका अभ्यास कराया। उन्होंने बताया कि अपनी जिव्हा को मुँह में नीचे तरफ चिपकाना है। इसमें जिव्हा के बीच की नस और मुंह के बीच की नस चिपकते है।
इस स्थिति को ही निर्वाणी मुद्रा कहा गया। जब वाणी शांत हो जाए। इस अवस्था में भगवान का सबसे पावन और सहज नाम स्वाभाविक रूप से ही निकलता है। मीठा रस भी आने लगता है। यही अमृत झिरिया है। बड़ी से बड़ी बीमारी भी ठीक करने में यह सक्षम है।
निर्वाणी मुद्रा में रहते हुए ऊँ के सस्वर उच्चारण से सत्संग हाल गुंजायमान होता रहा। उन्होंने कहा कि निर्वाणी मुद्रा का अभ्यास 24 मिनिट करना चाहिए। दिन में 2 या 3 बार मध्यम श्रेणी के साधक 12 मिनिट और सामान को कम से कम 6 मिनिट तो दिन में 2-3 बार अवश्य ही करना चाहिए।
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